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मुंबई: अक्सर आपको सरकारी नौकरी की जरूरत होती है। आखिर इसकी वजह क्या है? छुट्टियाँ अधिक आम हैं। निजी जगहों पर ऐसा नहीं होता, जहां छुट्टियां बहुत कम होती हैं। अच्छी कंपनियां अपने कर्मचारियों को पर्याप्त छुट्टियां देती हैं, जिसमें आपात स्थिति में कुछ लंबी छुट्टियां भी शामिल हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई कर्मचारी अचानक गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है, तो वह बीमार छुट्टी पर जा सकता है। कई कंपनियां ऐसी बीमारी के दौरान भी कुछ महीने सैलरी देती रहती हैं। लेकिन फिर बिना वेतन के छुट्टी पर जाना पड़ता है। अब एक ऐसे ही हॉलिडे से जुड़ा मामला सामने आया है, जिसे सुनकर आपके कान खड़े हो जाएंगे। तो आइये जानते है क्या हैं पूरा माजरा… 

 15 साल से बीमार छुट्टी पर था इयान क्लिफोर्ड 

आईटी कंपनी IBM में ऐसा हुआ, इस कंपनी में काम करने वाला एक कर्मचारी पिछले 15 साल से बीमार छुट्टी पर था। इन 15 सालों के दौरान कंपनी उनका वेतन देती रही। और ये सैलरी कोई छोटी रकम नहीं बल्कि 54 हजार पाउंड से ज्यादा थी। यानी अगर हम भारतीय रुपए में हिसाब लगाएं तो यह करीब 55 लाख रुपए सालाना होता है। कर्मचारी के मुताबिक यह सैलरी बहुत कम है। इस मामले में कर्मचारी ने कोर्ट में कंपनी के खिलाफ दावा पेश किया। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 15 साल से उनका वेतन नहीं बढ़ाए जाने के कारण कंपनी उनके साथ भेदभाव कर रही है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इन 15 सालों में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है, लेकिन उनका वेतन स्थिर रहा है। ऐसे में उन्हें बड़ा नुकसान हुआ है।

कैसे निकला मामला?

इस मामले में इयान क्लिफोर्ड नाम का एक कर्मचारी शामिल था। उन्होंने 2000 में लोटस डेवलपमेंट नाम की कंपनी के साथ काम करना शुरू किया। बाद में आईबीएम ने लोटस डेवलपमेंट को खरीद लिया। क्लिफर्ड 2008 में बीमार पड़ गए और बीमारी की छुट्टी पर चले गए। उन्होंने 2013 में कंपनी के खिलाफ मामला दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि उन्हें 2008 से 2013 तक पिछले पांच वर्षों में कोई वेतन वृद्धि या अवकाश वेतन नहीं मिला है। मामले को निपटाने के लिए, आईबीएम ने क्लिफोर्ड को अपनी विकलांगता योजना का हिस्सा बनाया। जिसके तहत कर्मचारी को 65 वर्ष की आयु तक पहुंचने तक उसके वेतन का 75% पेमेंट किया जाता है। इस तरह उन्हें हर साल 54,028 पाउंड यानी करीब 55.34 लाख रुपए मिल रहे थे। आईबीएम ने पिछले 15 साल में उन्हें 8 करोड़ से ज्यादा का पेमेंट किया है। दूसरी ओर, क्लिफोर्ड के अनुसार, यह वेतन अपर्याप्त है और इसलिए उन्होंने मांग की कि मुद्रास्फीति के अनुरूप वेतन बढ़ाया जाए। हालांकि जब मामला सुनवाई के लिए आया तो कोर्ट ने क्लिफर्ड की मांग खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि अगर उसे मिलने वाली रकम महंगाई की वजह से 30 साल में आधी भी हो जाए तो भी यह उचित रकम होगी।