डेब्ट फंडों से भागिए मत, बस सावधानी बरतें : डीपी सिंह

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चुनौतियां और तकलीफें ही सिखाती हैं सबसे बड़ा सबक़

मुंबई. देश के अग्रणी साझा कोष एसबीआई म्युचुअल फंड के कार्यकारी निदेशक एवं मुख्य विपणन अधिकारी डी. पी. सिंह ने कहा है कि मानव जाति ने भूतकाल में जो भी अप्रत्याशित घटनाओं का सामना किया हैं. फिर चाहे वह बहुत बड़ी वैश्विक महामारी हो या पर्यावरण की समस्या हो या फिर कोई बाज़ार की समस्या हो, ऐसी चुनौतियों ने हमे सबक सिखाया हैं और अधिक ज्यादा मज़बूत तथा समझदार बनकर उभरने की ताकत और दृष्टिकोण दिया हैं. ऐसी अनचाही, अप्रत्याशित घड़ी में हिम्मत एवं धैर्य रहना तथा अपने अनुभव से सीखना ज़रूरी होता हैं. एक कहावत हैं, ‘चुनौतियां एवं तकलीफें ही हमे सबसे बड़ा सबक़ सिखाती हैं’.

कोविड-19 की महामारी की वजह से आज हम एक अभूतपूर्व समय से गुजर रहे हैं. समूचे विश्व मे लगभग हर एक इन्सान को इसके विपरीत परिणाम और व्यापार-व्यवसाय में हो रही क्षति झेलनी पड़ रही है. इस महामारी का वैश्विक और घरेलू अर्थव्यवस्था पर कितना और किस हद तक असर होगा, इसका सटीक अनुमान कोई भी नही लगा सकता. और इसी अनिश्चितता की वजह से मार्केट में भी काफ़ी संशय का माहौल हैं.

एक और चुनौती का सामना करता उद्योग

इस महामारी से निपटते हुए म्युचुअल फंड उद्योग को हाल ही में एक और चुनौती का सामना करना पड़ा. 6 डेब्ट योजनाएं बंद हो जाने से निवेशक समुदाय में काफ़ी घबराहट का माहौल बन गया हैं. ऐसा कई बार देखा गया हैं कि निवेशक डेब्ट म्युच्युअल फंड की तुलना पारंपरिक निवेश तरीकों के साथ करते हैं. मगर इन उत्पादों की कार्यपद्धति को ठीक तरह से समझना और उन्हें पारंपरिक निवेश के मार्गों के साथ न जोड़ते हुए अलग तरीके से देखना आज समय की मांग हैं. आज के मार्केट के दृष्टिकोण से इसे समझना ज़रूरी हैं. 6 डेब्ट योजनाएं बंद करने के पीछे वजह थी योजना के स्तर पर  तरलता यानी नक़दी की कमी (संपत्ति को रुपए में तब्दील करने की क्षमता) जिससे निवेशकों को उनकी निवेश पूंजी वापस मिलने की गारन्टी नही दी जा सकती थी.

म्युचुअल फंडों और बैंक FD की तरलता में अंतर

निवेशकों को समझना चाहिए कि म्युचुअल फंड की तरलता और बैंक में जमा पूंजी (FD) की तरलता में अंतर होता हैं. किसी व्यक्ति द्वारा बैंक में जमा की गई राशि वापस करने का दायित्व या तो समय या फिर मांग के हिसाब से प्रतिबद्ध होता हैं. इसमें फर्क यह है कि समय की देयता के अनुसार एक निश्चित कालावधि के बाद रहती हैं. और मांग की देयता व्यक्ति किसी एक व्यक्ति द्वारा जब बैंक में पैसा जमा किया जाता हैं, तो वह या तो समय या फिर मांग की देयता पर वर्गीकृत किया जाता हैं. इन दोनी में फर्क देखे तो, समय की देयता हो, तो पैसे का भुगतान एक निश्चित तय तारीख को करना होता हैं. अगर मांग की देयता हो, तो जब भी निवेशक खातेदार पैसे की मांग करे, तो उसे वे देने पड़ते हैं.  तो इन दोनों ही स्थिति में किसी भी खातेदार को जब जरूरत पड़े, तब पैसे देने के लिए बैंक को तरलता रखना जरुरी होता हैं. इसलिए बैंक में जमा सभी राशि डेब्ट के तौर पर नहीं दी जा सकती. नियमों के अनुसार बैंक को मांग तथा समय की देयता (NDTL) के लिए कुछ हिस्सा अलग रखना अनिवार्य होता हैं. कैश रिजर्व रेशियो (फिलहाल यह 3 प्रतिशत है) वैधानिक तरलता रेशियो (फिलहाल 18 प्रतिशत हैं) अनुपात द्वारा तय की गई तरलता को बैंक में कायम रखना पड़ता हैं. इससे बैंक में एक पर्याप्त तरलता व्यवस्था रहती हैं. 

म्युचुअल फंडों की कार्यपद्धति अलग

मगर जब म्युचुअल फंड निवेश किये गये पैसों की बात हो, तब, इसकी कार्यपद्धति बिलकुल अलग होती हैं. म्युचुअल फंड योजनाओं में निवेश की गई राशि में से तरलता के लिए ऐसी कोई जमा पूंजी अलग रखने की अनिवार्यता नही होती है. म्युचुअल फंड योजना अपनी NAV (कुल संपत्ति का मूल्य) में जिन सिक्युरिटीज (प्रतिभूतियों) में निवेश किया गया हैं, उनके बाजार मूल्यों में हर दिन होने वाले बदलाव को दर्शाती हैं. यह योजना पोर्टफोलियो का एक हिस्सा नगदी रखकर तरलता की जरूरतों का प्रबंधन करता हैं. ऐसे समय में जब बाजार में काफी उतार-चढ़ाव होते हैं, उथल-पुथल होती हैं, तब निवेशक घबराहट में अपना निवेश निकालने लगते हैं. तब कोष प्रबंधकों द्वारा जो नक़दी रकम संभाली रहती हैं, वो भी दांव पर लग जाती हैं. और यही समय होता हैं जब कोष प्रबंधकों द्वारा संभाली गई दूसरे स्तर की तरलता बाहर आती हैं, और वो हैं पोर्टपोलियो की क्रेडिट क्वालिटी. डेब्ट सिक्युरिटी को, आर्थिक स्थिरता तथा डेब्ट चुकाने की क्षमता के आधार पर  एक अलग क्रेडिट रेटिंग दी जाती है. कम क्रेडिट रेटिंग वाली कंपनियों कि तुलना में सरकारी सिक्युरिटीज तथा AAA पेपर्स ज्यादा सुरक्षित होते है. जिनमें जोखिम का खतरा कम होता है.

निवेश से पहले क्रेडिट क्वालिटी देखना जरूरी

कोष के स्तर पर तरलता ऐसे निवेश के प्रतिशत से आंकी जाती है, जो निवेश तरल संपत्ती में ज्यादा किया गया हो. जैसे की नकदी के बराबर, सरकारी सिक्युरिटीज और कुछ AAA पेपर्स. इन पेपर्स के अच्छे दर्जे की वजह से जब भी जरुरत हो, उनका उपयोग किया जा सकता है. इसीलिए निवेश करने से पहले किसी भी पोर्टफोलियो की क्रेडिट क्वालिटी देखना बहुत जरूरी होता है. इस क्वालिटी के मूल्यांकन से हम समूचे पोर्टफोलियो के जोखिम का अनुमान लगा सकते है. 

अपनी जरूरतों के आधार पर करें चयन

कर्ज कोष का वर्गीकरण उनकी समयावधि के आधार पर किया जाता है. और निवेशकों को अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए लघु, मध्यम तथा दीर्घावधि के निधियों में निवेश करने की सलाह दी जाती है. उदहारण के तौर पर, अगर निवेशक को आपातकालीन स्थिति के लिए पैसे सुरक्षित रखने हेतु निवेश करना है, तो वे कम अवधि के या फिर बहुत कम अवधि के कोष (स्कीम) में निवेश कर सकते है. और अगर लंबे समय के उद्देश्य के लिए निवेश करना है, तो मध्यम अवधि वाले फंड यानी कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में निवेश कर सकते है. हालांकि पोर्टफोलियो की क्रेडिट क्वालिटी देखना भी उतना ही जरुरी है. कम रैंकिंग वाले पेपर्स की तुलना में निवेश करने वाले फंडों की तुलना में ऊंची क्रेडिट क्वालिटी वाले पोर्टफोलियो में जोखिम कम होता है.  

कोई भी निवेश करने से पहले सभी जोखिम क्षेत्रों को ध्यान में रखना किसी भी निवेशक के लिए बहुत जरुरी है. निवेश के पारंपरिक एक निश्चित ब्याज दर के साथ आते है. मगर यहाँ यह भी ध्यान में रखना जरुरी है कि इन ब्याज दरों में तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार बदलाव होता है. वहीं दूसरी तरफ डेब्ट म्युचुअल फंड योजनाओं से मिलने वाले रिटर्न्स अंडरलाइंग सिक्युरिटीज के उतार-चढाव से अलग अलग तरीके के फंडों द्वारा अलग-अलग मार्केट स्थितियों में लाभ देने की क्षमता पर निर्भर रहते है. हर निवेश से मिलने वाले रिटर्न्स उसके लिए उठाई गयी जोखिम के स्तर से जुड़े हुए है. 

क्षमता के अनुसार ही लें जोखिम

आसान शब्दों में कहा जाए तो कोई व्यापार या उद्योग शुरू करने में भी जोखिम है. मगर उससे कोई भी उद्यमी सपने पूरे करना छोड़ नहीं देता, बल्कि उद्योग करने की जिद उसे नपीतुली जोखिम लेने के लिए प्रोत्साहित करती है. जितने पैसों की जोखिम वह उठा सकते है, उसके आधार पर उद्यमी जोखिम लेते है. उसी तरह किसी व्यक्ति की जरूरतों के हिसाब से ऐसी कई निवेश योजनाएं है, जिसमें डेब्ट श्रेणी में अलग-अलग तरह की जोखिम वाले म्युचुअल फंड होते हैं. योजना का चयन जोखिम उठाने की क्षमता, वांछित लाभ, और निवेश के दायरे पर निर्भर करता है. 

जैसा कि कहा जाता है, लुढ़कते पत्थर और सीढियों के पत्थर के बीच का अंतर इस पर निर्भर है कि कोई उसका इस्तेमाल कैसे करता है. यही कहावत डेब्ट फंडों पर भी लागू होती है. हम लुढ़कते पत्थरों को (बाजार की अनिश्चित परिस्थिती को) पायदान के पत्थरों के तरह सुनियोजित तरीके से डेब्ट फंडों में कैसे इस्तेमाल करते है, यही सबसे अहम है.