GST

  • 15% गारमेंट इकाइयां हुईं बंद
  • 20% बढ़ी निर्माण लागत
  • 65% क्षमता पर ही चल रहीं इकाइयां

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मुंबई. एक हजार रुपए से कम कीमत वाले ब्रांडेड और गैर ब्रांडेड गारमेंट (Garments) भी अब महंगे हो जाएंगे क्योंकि महंगाई के इस दौर में केंद्र सरकार ने टेक्सटाइल इंडस्ट्री (Textile industry) में इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर (Inverted Duty Structure) में सुधार करने के नाम पर सभी गारमेंट्स पर वस्तु व सेवा कर (GST) दर घटाने की बजाय 5% से बढ़ाकर 12% कर दी है। 

जीएसटी काउंसिल का यह निर्णय एक जनवरी 2022 से लागू होगा। इसका सीधा असर आम जनता और लाखों गारमेंट निर्माताओं पर पड़ेगा। इस निर्णय का गारमेंट निर्माताओं की राष्ट्रीय संस्था दी क्लोदिंग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CMAI) ने कड़ा विरोध करते हुए सरकार से फाइबर, यार्न-फैब्रिक्स और गारमेंट पर 5% की समान जीएसटी दर करने की मांग की है।

क्या है इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की समस्या?

दरअसल अभी तक मैनमैड फाइबर (Synthetic Fibre) पर जीएसटी 18%, यार्न (Yarns) पर 12% और फैब्रिक्स (Fabrics) व गारमेंट (Garments) पर 5% लगता है। जबकि कॉटन (Cotton) की पूरी वैल्यू चेन यानी सभी उत्पादों पर 5% जीएसटी लगता है  और 1 हजार रुपए से कम कीमत वाले सभी परिधानों यानी गारमेंट पर जीएसटी 5% और 1 हजार रुपए से अधिक कीमत वाले गारमेंट पर 12% जीएसटी लगता है, लेकिन देश में 1 हजार रुपए से कम कीमत वाले गारमेंट ही ज्यादा बिकते हैं। यार्न पर जीएसटी 12% और अन्य रॉ मैटेरियल पर 12 से 18% होने से यार्न और फैब्रिक्स निर्माताओं का इनपुट टैक्स बोझ अधिक था। इसलिए इनकी समस्या का समाधान करने के नाम पर सरकार ने मैनमैड यार्न-फैब्रिक्स पर जीएसटी घटाकर 5% करने की बजाय गारमेंट पर भी टैक्स दरें बढ़ा दी हैं। इससे गारमेंट महंगे हो जाएंगे।

बढ़ेगा गारमेंट निर्माताओं का संकट: मसंद

सीएमएआई के प्रमुख राजेश मसंद ने कहा कि कोरोना महामारी के कारण मांग घटने से देश भर की 15 से 20% गारमेंट इकाइयां या तो बंद पड़ गयी है या मांग घटने से वे घाटे में चल रही हैं। सरकार को यह समझना चाहिए कि कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार देने वाले इस उद्योग में बेरोजगारी (Unemployment) बढ़ी है। गारमेंट उद्योग कोरोना पूर्व की स्थिति से अभी 60 से 65% की क्षमता पर ही पहुंचा है। इसलिए टैक्स बोझ बढ़ाने से संकट और बढ़ सकता है। टेक्सटाइल-क्लोदिंग की संपूर्ण वैल्यू चेन के लिए 5% यूनिफार्म जीएसटी दर ही रखनी चाहिए, जिससे खपत बढ़े, उत्पादन बढ़े, रोजगार बढ़े, जबकि इससे सरकार के राजस्व में मामूली कमी ही होगी, यदि सरकार ऐसा नहीं करना चाहे तो जीएसटी का वर्तमान शुल्क ढ़ांचा ही यथावत ही रखना चाहिए।

टैक्स बोझ बढ़ाना अन्यायपूर्ण: मेहता

सीएमएआई के चीफ मेंटर राहुल मेहता ने कहा कि महामारी के कारण जहां गारमेंट की मांग घट गयी हैं, वहीं इस दौरान यार्न, फैब्रिक्स, फ्यूल, पैकेजिंग सामग्री सहित सभी रॉ मैटेरियल कीमतें बढ़ने और ट्रासंपोर्टेशन खर्च बढ़ने से गारमेंट निर्माण लागत 20% तक बढ़ गयी है। उपभोक्ता नौकरी जाने या वेतन कटौती या अन्य कारणों से तनाव में है। इससे मांग ठप है। ऐसे समय में कपड़े जैसी आवश्यक वस्तु पर 7% अतिरिक्त टैक्स लगाना गारमेंट निर्माताओं का संकट और महंगाई बढ़ाएगा। कुल टेक्सटाइल वैल्यू चेन में इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की समस्या पूरे कपड़ा उद्योग के मात्र 15% हिस्से को आड़े आती है। इसके समाधान के नाम पर 85% उद्योगों पर टैक्स का बोझ बढ़ाना अन्यायपूर्ण है। जबकि आम आदमी द्वारा उपयोग की जा रही वस्तुओं पर टैक्स दर सबसे कम होनी चाहिए।