IPO मार्केट में गोरखधंधा, निवेशकों को 30,200 करोड़ की चपत

  • ‘सेबी’ की नई अध्यक्षा माधबी पुरी से निवेशकों में जगी उम्मीद

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मुंबई: शेयर बाजार (Stock Market) में मंदी आते ही आईपीओ (IPO) लाने वाली कंपनियों के शेयर धूल चाटने लगे हैं। आरंभिक सार्वजनिक निर्गम यानी आईपीओ (Initial Public Offering) सभी उद्योग क्षेत्रों की कंपनियों के लिए शेयर बाजार से पूंजी जुटाने का एक प्रचलित माध्यम है। बाजार की नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) नई कंपनियों को आईपीओ लाने की मंजूरी इसलिए देती है कि वे अपनी नई विस्तार परियोजनाओं (Expansion Projects) के लिए यानी कारोबार बढ़ाने के लिए आम एवं संस्थागत निवेशकों (Investors) को अपने इक्विटी शेयर (Equity Shares) बेचकर ना लौटाने वाली पूंजी (Capital) जुटा सके। साथ ही वे देश के आर्थिक विकास (Economic Development) में भागीदारी भी कर सके, परंतु इस सुविधा का कई कंपनियों के लालची प्रमोटर और मर्चेंट बैंकर (आईपीओ एजेंट) नाजायज फायदा भी उठा रहे हैं। 

मनमाने महंगे दाम पर आईपीओ लाकर निवेशकों को जमकर लूटा जा रहा है और लूट का यह खेल कुछ वर्षों से नहीं, बल्कि पिछले तीन दशकों के लंबे समय से खेला जा रहा है। अब तक भारतीय निवेशकों को सैकड़ों कंपनियों के आईपीओ में अरबों रुपए की चपत लग चुकी है। कितनी ही कंपनियां तो लापता हो गयी हैं। कंपनी प्रमोटर, मर्चेंट बैंकर, ब्रोकर (Promoters, Merchant Bankers, Brokers) सभी कार्टेल (Cartel) बनाकर इस ‘खेल’ में लिप्त है।

‘सेबी’ की छूट का नाजायज फायदा

वर्षों से जारी इस लूट की सबसे बड़ी वजह यह है कि ‘सेबी’ ने विगत वर्षों में निवेशकों के हित में आईपीओ से संबंधित तमाम रिफॉर्म तो किए, लेकिन आईपीओ मूल्य (IPO Price) निर्धारण का काम अपने हाथ में नहीं रखा है। यह काम कंपनियों और मर्चेंट बैंकरों पर छोड़ रखा है। इसी छूट (Free Pricing) का नाजायज फायदा उठाया जा रहा है, जबकि ‘सेबी’ के गठन के पहले कंट्रोलर ऑफ कैपिटल इश्यूज (Controller of Capital Issues-CCI) ने यह काम अपने हाथ में ले रखा था। तब बहुत ही उचित मूल्य पर आईपीओ आते थे और कोई लूट नहीं थी। निवेशकों की बार-बार मांग के बावजूद ‘सेबी’ ने यह काम अपने हाथ में नहीं लिया है। इस संबंध में ‘सेबी’ अधिकारियों का कहना है कि हमनें आईपीओ मूल्य निर्धारण का काम एंकर (संस्थागत) निवेशकों पर छोड़ रखा है और वे बुक बिल्डिंग प्रोसेस यानी बोली प्रक्रिया के जरिए सही मूल्य तय करते हैं। क्या यह तर्क उचित है, नहीं। क्योंकि संस्थागत निवेशकों के फंड मैनेजर भी इस गोरखधंधे में शामिल हैं। इसी वजह से कारट्रेड, पेटीएम, पीबी फिनटेक, नूवोको विस्टा, स्टार हेल्थ, फिनो पेमेंट, ग्लेनमार्क लाइफ सहित तमाम महंगे आईपीओ में एंकर निवेशकों द्वारा हजारों करोड़ रुपए निवेश के बावजूद इनके शेयर धूल चाट रहे हैं और लाखों आम निवेशकों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। विगत कुछ वर्षों में आए 20 महंगे आईपीओ की बात करें तो इनमें निवेशकों को 30,200 करोड़ रुपए से अधिक का भारी नुकसान हो चुका है।

घाटे वाली कंपनियों की मैन्युप्लेटेड हाई वैल्यूएशन  

पहले ज्यादात्तर लाभप्रद कंपनियां ही आईपीओ लाती थी, लेकिन ‘सेबी’ की उदार नीतियों का फायदा उठाकर घाटे में चल रही कंपनियां (Loss Making Companies) भी मनमाने दाम पर आईपीओ लाने लगी हैं। ये कंपनियां लुभावना प्रचार कर मैन्युप्लेटेड हाई वैल्यूएशन (Manipulated High Valuation) यानी कृत्रिम ढंग से काल्पनिक मूल्यांकन पर आईपीओ लाकर लूट की सारी हदें ही पार कर रही हैं। इसका सबसे उदाहरण कारट्रेड, पेटीएम (वन97), पीबी फिनटेक, जोमैटो, स्टार हेल्थ, पीबी फिनेटक, नूवोको विस्टा, कारट्रेड, एजीएस ट्रांजैक्ट जैसी घाटे वाली कंपनियों के अत्याधिक महंगे आईपीओ हैं। पिछले साल जब इनके आईपीओ आए थे। तब enavabharat.com  ने निवेशकों को इनसे सतर्क किया था। आज मंदी में इन सभी में अरबों रुपए का भारी नुकसान हो रहा है। बीएसई के आंकड़ों के मुताबिक, विगत 6 वर्षों में कुल 377 कंपनियों के आईपीओ आए, जिनमें से 102 आईपीओ में तो निवेशकों को लिस्टिंग के दिन ही नुकसान उठाना पड़ा और अनेक आईपीओ अपने निर्गम मूल्य से लगातार नीचे ही ट्रेड कर रहे हैं। स्पष्ट है इन सभी आईपीओ में शेयर मूल्य अत्याधिक महंगे थे।

अफसोस इस बात का है कि यह फाइनेंशियल क्राइम वर्षों से बदस्तूर जारी है। फिर भी ना सरकार सख्त कदम उठाती है और ना ही सेबी। चूना लगाने के इस गोरखधंधे में प्रमोटर, मर्चेंट बैंकर, ब्रोकर, फंड मैनेजर सभी लिप्त हैं। हर बार बाजार की तेजी में सैकड़ों कंपनियां मनमाने दाम पर आईपीओ लाकर निवेशकों को चपत लगाती हैं। निवेशकों का भरोसा टूटता है। इसलिए बाजार में मंदी आने का यह भी एक बड़ा कारण बनता है। अब उम्मीद है कि ‘सेबी’ की नई मुखिया माधबी पुरी बुच इस गोरखधंधे पर अंकुश लगाने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाएंगी और भारतीय पूंजी बाजार में निवेशकों का भरोसा बनाए रखने के लिए आईपीओ मूल्य निर्धारण का काम ‘सेबी’ अपने हाथ में लेगी।

-एस.पी. शर्मा, अध्यक्ष, राइट्स

आंकड़ों से स्पष्ट है कि महंगे भाव पर आए निर्गमों में जिन निवेशकों ने पैसा लगाया, उनमें से अधिकांश को भारी घाटा हुआ है। हालांकि आईपीओ का मूल्य निर्धारण संस्थागत निवेशकों के द्वारा ऑफर किए गए भाव के नजदीक रखा जाता है। जिसे सामान्य निवेशकों में यह कह कर प्रचारित किया जाता है कि बड़े-बड़े निवेशक इस भाव पर लेने को तैयार बैठे हैं तो जरूर इसमें कुछ दम है, लेकिन हकीकत यह है कि आम निवेशकों में जागरूकता और फाइनेंशियल मार्केट की पर्याप्त समझ नहीं होती है। इसलिए वे उनके बहकावे में आकर निवेश करते हैं और घाटे में आ जाते हैं। जबकि इनमें संस्थागत निवेशकों के फंड मैनेजरों की खुद की पसीने की कमाई नहीं लगी होती है, लिहाजा किसी में घाटा भी हो जाए तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, परंतु अनुचित मूल्य वाले निर्गमों में हो रहे नुकसान से निवेशकों का भरोसा टूटता है, जो भारतीय पूंजी बाजार के विकास में एक बड़ी बाधा है, इसलिए इस मामले का संज्ञान लेकर वित्त मंत्री को यथोचित कदम उठाने चाहिए।

-नरोत्तम मिश्रा, वरिष्ठ चार्टर्ड अकाउंटेंट