इन्वेस्टर को फंसाते ऑपरेटर, चपत लगाने का गोरखधंधा बदस्तूर जारी

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    मुंबई:  सरकार यदि देश में उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कुछ छूट देती है तो कुछ स्वार्थी तत्व उसका दुरूपयोग (Misuse) भी करने लगते हैं। और यदि सरकार दुरूपयोग करने वालों पर अंकुश भी नहीं लगाती है तो उसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ता है। ठीक ऐसा ही वर्तमान में शेयर बाजार (Stock Market) में हो रहा है। बाजार नियामक ‘सेबी’ (SEBI) ने जब से स्टार्ट-अप कंपनियों को प्रोत्साहन देने हेतु नए सार्वजनिक निर्गम (IPO) लाने वाली कंपनियों के लिए 3 साल का प्रॉफिट रिकार्ड होने और 10 रुपए फैस वैल्यू (Face Value) की अनिवार्यता खत्म की है। तब से कई लालची प्रमोटर (Greedy Promoters) अपनी भारी घाटे वाली कंपनियों (Loss Making Companies) के आईपीओ रिकार्ड महंगे दाम पर यानी हाई वैल्यू प्राइस (Very High Prices) पर लाकर रिटेल निवेशकों (Retail Investors) को लूटने के लिए सक्रिय हो गए हैं। और इस लूट में उनका साथ दे रहे हैं लालची मर्चेंट बैंकर (Greedy Merchant Bankers), फंड हाउस (Fund Houses), सट्टेबाज और अन्य बिचौलिए। सभी सट्टेबाज (Speculators) यानी ऑपरेटर (Operators) कार्टेल बनाकर लूटने में लगे हैं। 

    तभी तो 1700 करोड़ रुपए से अधिक के भारी घाटे वाली पेटीएम (Paytm) की वैल्यू क्या 3,100 करोड़ रुपए का भारी मुनाफा कमाने वाले एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) से ज्यादा हो सकती है? कदापि नहीं। हैरानी की बात यह है कि ना सरकार, ना ही सेबी कोई कदम उठा रही है। जब-जब बाजार में इस तरह की लूट की जाती है तो बाद में कई ‍‍‍‍‍‍‍वर्षों तक बाजार में मंदी छा जाती हैं क्योंकि तब नुकसान होने के कारण रिटेल निवेशक आईपीओ से दूर हो जाते हैं। जैसा कि विगत दशकों में कई बार देखा गया हैं। ‍1998-2000 के डॉटकॉम बबल (Dotcom Bubble) में भी ऐसा ही हुआ। उस दौरान इंटरनेट आधारित कई बोगस कंपनियों ने अपने नाम में ‘सॉफ्टवेयर’ लगाकर महंगे आईपीओ लाए और सट्टेबाजी कर निवेशकों को जमकर चपत लगायी। डीएसक्यू सॉफ्टवेयर (DSQ Software) , सत्यम कंप्यूटर (Satyam Computers), पेंटामीडिया ग्राफिक्स (Pentamedia graphics), इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी (Information Technology) , ग्लोबल टेली (Global Tele) जैसे कई सैकड़ों नाम हैं। इनके शेयर भाव भी भारी सट्टेबाजी कर हजारों रुपए में पहुंचा दिए गए थे, लेकिन जैसे ही डॉटकॉम बबल फूटा, इन सभी के शेयर धूल चाटने लगे। विगत तीन दशकों में आईपीओ लाने वाली लालची प्रमोटरों की हजारों कंपनियां लापता है और उनमें निवेशकों के अरबों रुपए डूब चुके हैं। अब फिर वैसा ही लूट का ‘खेल’ सट्टेबाज और प्रमोटर नए स्वरूप में खेल रहे हैं। अब टेक्नोलॉजी, ई-कॉमर्स या ऑनलाइन बिजनेस के नाम पर लूट की जा रही है।

    कैसे होता है यह ‘खेल’

    पेटीएम (Paytm), नायका (Nykaa), कारट्रेड (Cartrade), पीबी फिनेटक (PB Fintech), जोमैटो (Zomato), फिनो पेमेंट बैंक (Fino Payment Bank), सैफायर फूड (Sapphire Foods), नूवोको विस्टास (Nuvoco Vistas), सूर्योदय स्माल (Suryoday Small Finance Bank), मोबिक्विक (Mobikwik) सहित कई कंपनियां घाटे में या मामूली प्रॉफिट में होने के बावजूद ‘सेबी’ की छूट का दुरुपयोग कर जिस तरह से अत्याधिक शेयर मूल्यों पर आईपीओ लाई हैं या फिर ला रही हैं, उसे देख बाजार के रिटेल निवेशक और विश्लेषक हैरान हैं। इतने हाई वैल्यू पर आईपीओ लाने के लिए इनके प्रमोटर और मर्चेंट बैंकर मिलकर सुनियोजित ढंग से कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं। पहले फंड हाउस और ब्रोकरों से काल्पनिक आंकड़ों की रिपोर्ट बनवाकर अपनी वैल्यू ऊंची दिखाने का माहौल बनाया जाता है। फिर उसका लुभावना प्रचार किया जाता है। माहौल बनने पर आईपीओ लाया जाता है। आईपीओ के पहले फंडों को पटाकर यानी कैश में ‘कमीशन’ देकर उनसे ऊंचे मूल्यों पर निवेश कराया जाता है। आईपीओ के समय बनावटी वैल्यूएशन बताकर ग्रे मार्केट में सट्टेबाजों की मदद से कृत्रिम रूप से ऊंचा प्रीमियम चलाया जाता है। जिसे देख रिटेल निवेशक भेड़चाल की तरह आईपीओ में निवेश कर डालते हैं। फिर ऊंचे में लिस्टिंग कराकर फंडों से खरीद रिपोर्ट बनवाई जाती है और सट्टेबाजी के जरिए भाव बढ़ाकर फिर निवेशकों को ललचाया जाता है। जैसे एक विदेशी फंड यूबीएस (UBS) ने जोमैटो की लिस्टिंग के बाद 27 जुलाई को खरीद रिपोर्ट निकालकर 165 रुपए का लक्ष्य दिया, लेकिन उल्टे भाव गिरकर 132 रुपए आ गया। या फिर आईपीओ सब्सक्राइब होने पर लिस्टिंग के बाद से ही भाव गिराना शुरू कर निवेशकों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। जैसे कारट्रेड, सूर्योदय स्माल, फिनो पेमेंट बैंक, विंडलास बायो में हुआ। अब फिर सितंबर तिमाही में जोमैटो को 414 करोड़ रुपए का घाटा होने के बावजूद कई फंड इसे खरीदने की सलाह देकर निवेशकों को फंसा रहे हैं। पेटीएम भी 1700 करोड़ रुपए के भारी घाटे में है। क्या दुनिया में कभी कोई बिजनेस घाटे में लंबे समय तक चल सकता है? कतई नहीं। जिस बिजनेस में कैश फ्लो नहीं है, प्रॉफिट नहीं है, वह घाटे में कितने चलेगा। एक दिन डूबना ही है।  

    नियमों के चलते पहले प्रमोटर उचित मुल्य पर आईपीओ लाते थे, जैसे कोलगेट (12 रुपए), टाटा एलेक्सी (10 रुपए), एचडीएफसी बैंक (10 रुपए), इं‍फोसिस (95 रुपए) के आए। परंतु आज IPO मार्केट पूरी तरह चमक-धमक वाला सट्टा मार्केट बन चुका है, जहां बड़े सट्टेबाजों का ग्रुप लालची प्रमोटरों से सांठ-गांठ कर रिटेल इन्वेस्टर को फंसाते हैं। जब तक शेयर बाजार में तेजी है, ये कृत्रिम हाई वैल्यू वाले शेयर ऊंचे भावों पर टिके हैं, लेकिन जब बाजार गिरना शुरू होगा, इन्हें कोई नहीं पूछेगा। इसलिए रिटेल इन्वेस्टर को इन हाई वैल्यू वाले आईपीओ से दूर रहना चाहिए। यदि ऑनलाइन बिजनेस (Online Business) में इतनी वैल्यू है तो बीएसई (BSE) का शेयर 33 के पीई मल्टीपल पर ही क्यों ट्रेड कर रहा है और नायका का 1600 के पीई पर क्यों? जबकि बीएसई और एनएसई (NSE) का तो मोनोपोली बिजनेस है। नायका का तो मोनोपॉली बिजनेस भी नहीं है, उसके पोर्टल पर तो कोई कस्टमर सुबह 9 बजे से ट्रेड करने के लिए लाइन नहीं लगाता है। स्पष्ट है सट्टेबाजी के बल पर कुछ समय के लिए कोई भी भाव किया जा सकता है। नायका से 20 गुना ज्यादा कैश कमाने वाली कंपनियों SAIL और NMDC के शेयर आज मात्र 2 से 3 के पीई यानी बेहद सस्ते वैल्यू पर उपलब्ध हैं। निवेशकों को ऐसे मजबूत फंडामेंटल और डिविडेंड देने वाले स्टॉक लेने चाहिए, जिनमें कुछ समय लग सकता है, लेकिन डूबने का जोखिम नहीं है और रिटर्न मिलने की पूरी संभावना है।

    -किशोर ओस्तवाल, अध्यक्ष, CNI रिसर्च

    सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन प्रमोटरों को यदि अपनी कंपनियों में हाई वैल्यू दिखाई दे रही है, बिजनेस में ग्रोथ दिख रही है तो फिर ये कंपनी के फायदे में आने का इंतजार क्यों नहीं कर रहे हैं। आईपीओ में अपने खुद के शेयर ही क्यों बेच रहे हैं? इनके प्रमोटर और इनके बड़े निवेशक कंपनी के घाटे में रहते हुए ही अपना निवेश क्यों निकाल रहे हैं? ये कोई समाजसेवी तो हैं नहीं? जाहिर है इन्हें खुद कंपनी पर भरोसा नहीं है। इसलिए बाजार की तेजी का फायदा उठाकर अपनी जेब भर लेना चाहते हैं। बाद में मौका मिले या ना मिले, कोई भरोसा नहीं। इसलिए छोटे निवेशकों के हितों को सुरक्षित रखने और उन्हें आईपीओ की ऐसी लूट से बचाने के लिए ‘सेबी’ को आईपीओ मूल्य निर्धारण का काम भी अपने हाथ में लेना चाहिए।

    -एस. पी. शर्मा, अध्यक्ष, राइट्स