Ashok Holani

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    मुंबई:  किसी भी सार्वजनिक निर्गम (IPO) की प्रक्रिया और मूल्य निर्धारण में मर्चेंट बैंकर्स (Merchant Bankers) की मुख्य भूमिका होती है। मूल्य निर्धारण (IPO Price) करते समय मर्चेंट बैंकर को इन्वेस्टर (Investor) और प्रमोटर (Promoter), दोनों का हित देखना चाहिए, लेकिन कई मर्चेंट बैंकर केवल प्रमोटरों के हितों को तवज्जो देते हुए बहुत ही ज्यादा महंगे मूल्य (High Value) पर आईपीओ ला रहे हैं। जिसके कारण रिटेल निवेशकों को भारी नुकसान (Loss) हो रहा है और उसका दुष्प्रभाव पूरे बाजार (Stock Market) पर पड़ता है। इसका ज्वलंत उदाहरण 1700 करोड़ रुपए के घाटे वाली फिनटेक कंपनी पेटीएम (Paytm) का 18,300 करोड़ रुपए का सबसे महंगा आईपीओ है। जिसके शेयरों में बीते सप्ताह लिस्टिंग के पहले ही दिन निवेशकों को 27% का भारी घाटा उठाना पड़ा। 

    हालांकि कई मर्चेंट बैंकर उचित मूल्य पर आईपीओ लाकर निवेशक हितों को भी तवज्जो दे रहे हैं। उनमें होलानी कंसल्टेंट्स प्रा. लि. (Holani Consultants Private Ltd.) मुख्य है। आईपीओ मार्केट की स्थिति और निवेशक हितों के संबंध में होलानी कंसल्टेंट्स के निदेशक सीए अशोक होलानी से वाणिज्य संपादक विष्णु भारद्वाज की चर्चा हुई। पेश हैं, उसके मुख्य अंश:-

    आप मर्चेंट बैंकर के रूप में किसी कंपनी का आईपीओ लाते समय इन्वेस्टर और प्रमोटर का क्या हित देखते हैं?

    देखिए हमें मर्चेंट बैंकर के साथ इन्वेस्टमेंट बैंकर (Investment Banker) भी कहा जाता हैं। हमारे इन्वेस्टर या जनरल रिटेल इन्वेस्टर हमारी रिकमेंडेशन (Recommendation) पर हमारे द्वारा मैनेज आईपीओ में पैसा लगाते हैं। इसलिए हम सबसे पहले इन्वेस्टर का हित देखते हैं। उन्हें प्राथमिकता देते हैं। आईपीओ की मंजूरी के लिए जो डाक्यूमेंट्स यानी डीआरएचपी (DRHP) बनते हैं, उसमें इन्वेस्टर के हित में कंपनी के सारे रिस्क फैक्टर (Risk Factor) बताए जाते हैं। पूरी स्पष्ट जानकारी दी जाती है। कोई गलत जानकारी ना हो, इसका ध्यान रखते हैं। फिर आईपीओ में शेयर प्राइस तय करते समय हम हमेशा उचित वैल्यूएशन (Fair Value) देखते हैं क्योंकि हमारा उद्देश्य यह रहता है कि हमारे आईपीओ में जो इन्वेस्ट (Invest) करें, उसे अच्छा रिटर्न (Return) मिले। साथ ही प्रमोटर को उसकी कंपनी की बिजनेस ग्रोथ करने के लिए पूंजी (Capital) मिले। होलानी कंसल्टेंट्स ने हमेशा प्रॉफिटेबल (Profitable) और ग्रोइंग कंपनी (Growing Company) का ही आईपीओ उचित मूल्य पर लाने की नीति अपनाई है।

    रिटेल इन्वेस्टर को किसी भी आईपीओ में निवेश करते समय क्या मुख्य फैक्टर देखने चाहिए?

    हमेशा इन्वेस्टर को आईपीओ में बेसिस ऑफ इश्यू प्राइस (Basis Of Issue Price) देखना चाहिए कि शेयर प्राइस उचित मूल्य पर है या नहीं। उसके बिजनेस का आउटलुक क्या है। केवल नाम को देखकर इन्वेस्ट नहीं करना चाहिए। और जो आजकल क्रेजी वैल्यूएशन पर घाटे वाली कंपनियों के महंगे आईपीओ आ रहे हैं। यह एक तरह से लॉस ऑफ डिस्ट्रिब्यूशन (Loss Of Distribution) है यानी खुद के नुकसान को दूसरों में बांटा जा रहा है। घाटे वाली कंपनी के आईपीओ के प्रमोटर और बड़े इन्वेस्टर्स ने तो सस्ते में शेयर लिए थे और अब उन्हें ऊंचे मूल्यों पर पब्लिक को बेच रहे हैं। सोचने की बात है कि जो कंपनी घाटे में है, कुछ कमा ही नहीं रही है, उसमे नया इन्वेस्टर कैसे कमाएगा?  

    पेटीएम जैसे महंगे आईपीओ पर अंकुश लगाने के लिए नियामक ‘सेबी’ को क्या कदम उठाने चाहिए?

    देखिए, सेबी (SEBI) ने तो कड़े नियम बना रखे हैं। अब तो मर्चेंट बैंकर्स को अपना नैतिक दायित्व निभाने की जरूरत है। क्योंकि आईपीओ उचित मूल्य पर आएंगे, तभी रिटेल इन्वेस्टर को रिटर्न मिलेगा और उसका विश्वास (Trust) मर्चेंट बैंकर्स और मार्केट पर बना रहेगा।