Who Are Responsible For Adani Investor's Loss

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मुंबई: अमेरिकी शॉर्ट सेलर यानी मंदड़िया फर्म हिंडनबर्ग (Hindenburg Research) ने 4 महीने पहले भारत के अदानी ग्रुप (Adani Group) पर हेराफेरी के आरोप लगाते हुए एक रिपोर्ट जारी कर भारतीय शेयर बाजार (Indian Stock Market) में मंदी का जो षड्यंत्र रचा था, वह बेहद ही घिनौना कृत्य था। बाद में यह भी जाहिर हो गया कि इस साजिश में दुनिया के एक सबसे बड़े मंदड़िए जॉर्ज सोरोस की भी बड़ी भूमिका थी। इस पूरे प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट समिति की रिपोर्ट आने के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि हिंडनबर्ग के आरोप बेबुनियाद और स्वार्थ से प्रेरित थे। हिंडनबर्ग की बदनीयती और भारतीय औद्योगिक समूह की छवि खराब करने की साजिश का दूसरा प्रमाण यह भी है कि पिछले 4 महीनों में एक के बाद एक कई अमेरिकी बैंकों के घोटाले उजागर हुए और कई डूब गए, लेकिन हिंडनबर्ग ने अपने देश (अमेरिका) के किसी भी बैंक की हेराफेरी या घोटाले पर एक भी रिपोर्ट नहीं बनाई। 

इस मंदी कांड में अदानी ग्रुप को तो बड़ा नुकसान हुआ ही, साथ ही इसके 48 लाख निवेशकों (Investors) को करीब 3.40 ट्रिलियन रुपए का जबरदस्त घाटा (Loss) हुआ। यहीं नहीं, इस मंदी कांड के कारण पूरा भारतीय बाजार मंदी की चपेट में आ गया और बीएसई के कुल मार्केट कैप में 20 ट्रिलियन रुपए से अधिक का भयंकर नुकसान हुआ। अब बड़ा सवाल यह कि 23 ट्रिलियन रुपए से अधिक के इस भयंकर नुकसान का जिम्मेदार कौन हैं और इसकी भरपाई कौन करेगा?

आम निवेशकों के नुकसान की भरपाई होना मुश्किल

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट जारी होने के पहले 24 जनवरी 2023 को अदानी ग्रुप का कुल मार्केट कैप (Market Cap) 19.20 ट्रिलियन रुपए था, जो इस षड्यंत्र के कारण घटते हुए 2 मार्च को 7.90 ट्रिलियन रुपए रह गया। यानी कुल 11.33 ट्रिलियन रुपए का बड़ा घाटा हुआ। ग्रुप की 10 लिस्टेड कंपनियों में अदानी फैमिली की हिस्सेदारी 57% से लेकर 75% तक है। शेष हिस्सेदारी रिटेल निवेशकों और संस्थागत निवेशकों की है। संस्थागत निवेशकों में भी निवेश आम निवेशक का ही होता है। यदि आम निवेशकों की औसतन हिस्सेदारी 30% मान कर आकलन किया जाए तो कुल 11.33 ट्रिलियन रुपए के घाटे में 3.40 ट्रिलियन का भारी नुकसान तो अदानी के 48 लाख निवेशकों को उठाना पड़ा। कितने ही निवेशकों ने घबराकर भारी नुकसान में शेयर बेच दिए। अब उनके नुकसान की भरपाई होना मुश्किल है। कुछ इसी तरह के मंदी कांड की साजिश भारतीय बाजार में पहले भी रची गयी थी। 2001 में बजट सत्र के बीच तहलका टेप जारी करवा कर कानून-नियमों की खामियों का नाजायज फायदा उठाकर यानी यानी शॉर्ट सेल कर मंदी का कुचक्र रचा गया था, जिसके कारण भयंकर मंदी आई और लाखों निवेशकों से अरबों रुपए लूट लिए गए। वैसे इस बार ‘सेबी’(SEBI) ने तत्काल ठोस कदम उठाए, जिसके कारण बाजार में ज्यादा मंदी नहीं आ पाई।

अदानी के प्रति निवेशकों का भरोसा बढ़ा

हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट की समिति की रिपोर्ट आने, ग्रुप की अधिकांश कंपनियों द्वारा कारोबार और लाभ में अच्छी वृद्धि के साथ अच्छे रिजल्ट घोषित किए जाने तथा ग्रुप द्वारा निवेशकों के भरोसे को बहाल करने के लिए कर्ज भार कटौती सहित कई अहम कदम उठाए जाने से अदानी के शेयरों में फिर तेजी आने लगी है। इससे मार्केट कैप बढ़कर फिर से 11 ट्रिलियन रुपए के करीब पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट समिति ने कहा है कि अदानी ग्रुप के शेयरों के भाव में हेराफेरी का उसे कोई सबूत नहीं मिला है। साथ ही अदानी ग्रुप की कंपनियों में विदेशी कंपनियों के निवेश में हुए कथित उल्लंघन की अलग से हुई जांच में ‘सेबी’ को कुछ नहीं मिला है। तमाम आरोपों के बावजूद अदानी ग्रुप के प्रति भारतीय और विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। इसी कारण अब ग्रुप के निवेशकों की संख्या 23 लाख बढ़कर 71 लाख से अधिक हो गयी है, जो मंदी कांड के पहले 48 लाख थी।

LIC का निवेश मूल्य बढ़कर 45,000 करोड़ पर पहुंचा

प्रमुख बीमा कंपनी एलआईसी (LIC) का अदानी की 7 कंपनियों में किए गए निवेश का मूल्य भी बढ़कर 45,000 करोड़ रुपये हो गया है। जबकि एलआईसी का मूल निवेश 30,127 करोड़ रुपए है, जिसका मूल्य दिसंबर 2022 में 82,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। लेकिन मंदी कांड के बाद घटकर फरवरी, 2023 में सिर्फ 27,000 करोड़ रुपये तक आ गया था। हालांकि अब फिर फायदा बढ़ने लगा है, परंतु राजनीतिक दलों ने एलआईसी के नुकसान की भी चिंता नहीं की। जबकि एलआईसी का घाटा भी आम जनता का ही नुकसान है क्योंकि एलआईसी सार्वजनिक उपक्रम है।

केवल शक के आधार पर कब तक तलवार लटका कर रखोगे?: जे. एन. गुप्ता 

‘सेबी’ के पूर्व कार्यकारी निदेशक और स्टेकहोल्डर्स एम्पावरमेंट सर्विसेज के प्रबंध निदेशक जे. एन. गुप्ता (JN Gupta) का कहना है कि यह पूरा मामला शक के आधार पर उठाया गया और शक का तो कोई इलाज है ही नहीं। किसी विदेशी ने अपने निजी स्वार्थ के लिए शक के आधार पर आरोप लगाए और राजनीतिक दलों ने मामले को तिल का ताड़ बना दिया। बेहद अफसोस की बात यह कि इस पूरे प्रकरण में एलआईसी और एसबीआई, जो देश के जिम्मेदार बड़े वित्तीय संस्थान हैं, के प्रमुखों की बात को आपने नजरअंदाज कर दिया और स्वार्थी विदेशियों के कथन को तवज्जो दिया। इसका मतलब यह निकलता है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का सपोर्ट करने वाले या तो बेवकूफ थे या फिर उनका अपना कोई विशेष एजेंडा था। दुख की बात यह भी है कि इस प्रकरण में लाखों भारतीय निवेशकों के हित साजिश की बलि चढ़ गये। अब महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कानून तो शक या संदेह के आधार पर नहीं चल सकता है। केवल शक के आधार पर कब तक किसी की गर्दन पर तलवार लटका कर रखी जा सकती है? जबकि इस मामले में लाखों निवेशकों के हित जुड़े हुए हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट और सरकार को केवल संदेह के आधार पर जबरदस्ती तूल दिए गए इस मामले का निपटान देश और जनहित में जल्द से जल्द करना चाहिए। साथ ही भविष्य में केवल संदेह के आधार पर कोई भी आम निवेशकों के हितों के साथ खिलवाड़ ना कर सके, इसके लिए भी ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

निवेशक हितों के साथ खिलवाड़ की यह कैसी राजनीति?: जी. राजारामन

वरिष्ठ पत्रकार और पूंजी बाजार विशेषज्ञ जी. राजारामन (G. Rajaraman) का कहना है कि जाहिर तौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट ने उन सभी विस्फोटकों को मजबूत तरीके से ‘डिफ्यूज’ कर दिया है, जो अदानी ग्रुप को नीचे गिराने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस तरह के कृत्य से लाखों निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। राजनीतिक दलों ने विदेशी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग के आरोपों को घोटाले का नाम दिया, जबकि अदानी ने आज तक ना किसी निवेशक का पैसा डूबाया और ना ही किसी बैंक का कोई एक रुपया भी डिफॉल्ट किया। इसके विपरीत विगत वर्षों में लाखों निवेशकों को अच्छा-खासा फायदा देकर उनकी वेल्थ ही बनाई है। फिर यह घोटाला कैसे माना जा सकता है। आम निवेशकों के हितों के साथ खिलवाड़ की यह कैसी राजनीति है?