Bambu artifacts make Minakshi the 'Bambu Lady of Maharashtra'

दीपों के त्योहार दीपावली की तैयारी देश भर में शुरु हो गई है।

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  • बांबू कला से चंद्रपुर का नाम पहुंच रहा देश और दुनिया में
  • तैयार हो रहे दीपावली के दीपक, लैंप, कैंडल, उपहार के डिब्बे

– सुरेश वर्मा

चंद्रपुर. दीपों के त्योहार दीपावली की तैयारी देश भर में शुरु हो गई है। इसके साथ ही चंद्रपुर निवासी मिनाक्षी मुकेश वालके और उनकी सहयोगी महिलाओं ने देश भर में मनाई जाने वाली दीपावली के लिए गोमय दीप, लैंप, कैंडल स्टैंड, मिठाई के डिब्बे, बांबू के दिये, छोटे बल्ब की सीरिज और बांस के जेवर तैयार कर रहे है। जिन्हे आर्डर के हिशाब से देश भर के राज्यों को भेजा जाएगा। इस माध्यम से चंद्रपुर के दीपों से कई राज्यों के घर रोशन होंगे।

मिनाक्षी ने बताया कि दीपावली में दीपकों को विशेष महत्व होता है। आदिकाल से मिट्टी के दीपों का प्रचलन है किंतु आधुनिकता के साथ ही मोमबत्ती, मेटल के दीपक और अनेक प्रकार के दीपों का चलन बढ गया है। किंतु पर्यावरण सुरक्षा के मद्देनजर मिनाक्षी ने बांस की कलाकृतियों के माध्यम से दीपावली की तैयारी शुरु की है। दीपावली के लिए राज्य के महाराष्ट्र, ठाणे, मुंबई समेत देश के झारंखड, बिहार, तेलंगाना, तामिलनाडू, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, नई दिल्ली आदि स्थानों से दीपक के आर्डर मिले है।

प्लास्टिक मुक्त, डिजाइन्स और संस्कृति में रची बसी पर्यावरण के लिए पुरी तरह से सुरक्षित बांस की कलाकृतियों को उन्होंने चुना है। गोमय दीपक के संबंध में बताया कि यह दीपक गोबर, गोमूत्र, दूध, दही और घी के मिश्रण से बनाया जाता है। जो पर्यावरण के लिए पुरी तरह से सुरक्षित है। इसके अलावा महिलाओं के लिए बांस के बने ईयर रिंग, नेकलेस के साथ अन्य जेवर, महिला पर्स, टोकनी, ट्रे, बास्केट जैसी अन्य कलाकृतियां बनाई जा रही है।  प्रकृति और पर्यावरण से रोजगार के अवसर की तलाश कर लोगों को इसके संवर्धन की दिशा में प्रेरित करने वाली महिला ने प्रत्यक्ष काम कर मिसाल कायम की है।

किसी से रोजगार मांगने की बजाय स्वयं रोजगार देने के इरादे से मिनाक्षी दलित, आदिवासी 6 महिलाओं के साथ दीपावली की तैयारी कर रही है। कोरोना की वजह से देश भर में मंदी छाई है इसके बावजूद दीपावली से उन्हे काफी उम्मीदें है।

2018 में गर्भ में पुत्री की मृत्यु के बाद मिनाक्षी अवसाद में चली गई थी। उनके पति के मित्र ने उन्हे बांबू कलाकृतियों के बारे में थोडी जानकारी दी। 2016 से डिजाईन थ्रेड ज्वेलरी से जुडी मिनाक्षी को बांबू कला में भविष्य दिखाई दिया और उन्होंने बांबू रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर चिचपल्ली चंद्रपुर में प्रवेश प्राप्त कर 70 दिनों का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वहीं से कुछ कलाकृतियों को लेकर नागपुर के प्रदर्शनी में शामिल हुई वहां बांस की बनी कलाकृतियों को मिले प्रतिसाद को देखकर अक्टूबर 2018 से स्वयं के हाथों से कलाकृतिया बनाना शुरु किया। वर्ष 2020 के रक्षाबंधन पर मिनाक्षी के हाथों बनी राखी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों पर बांधी गई जिसकी प्रधानमंत्री ने काफी सराहना की। इसके पूर्व वर्ष 2019 में मिनाक्षी की बनी बांबू की राखी तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हाथों पर भी थी। नई दिल्ली में हुए वैश्विक स्तर के ब्यूटी कांन्टेस्ट के विजेता के लिए बांबू का क्राऊन चंद्रपुर की मिनाक्षी ने तैयार किया था। इस माध्यम से विश्व के 10 देशों में उनका नाम, शोहरत और पहचान दी है।

उनकी कलाकृतियों को देखते हुए वर्ष 2018 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री की पत्नी अमृता फडणवीस के हाथों राष्ट्रीय नारी शक्ति सम्मान पुरस्कार नई दिल्ली और वर्ष 2019 में टाप 20 स्टार्ट अप पुरस्कार नई दिल्ली से सम्मानित किया गया है। वर्ष 2019 मं इजराईल के येरुसलम में वर्कशाप में प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस प्रकार का निमंत्रण प्राप्त मिनाक्षी देश की पहली कलाकार है।

बांबू की कलाकृतियों के माध्यम से गरीब, झोपडपट्टी में रहने वाली महिलाओं को रोजगार देना, ग्रामीण महिलाओं को ट्रेनिंग देना, देश भर में बांबू के डिजाईन और खेती के लिए जनजागृति करना उनका उद्देश्य है। फिलहाल उनके साथ 6 महिलाएं काम कर रही और 50 को प्रशिक्षण दे रही है। उन्हे कटनी, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा आदि राज्यों की महिलाओं को बांबू कला का प्रशिक्षण देने आमंत्रित किया गया है। किंतु कोरोना की वजह से फिलहाल वे जा नहीं सकी है।

न मशीनें, न वर्कशाप के लिए जगह, न पैसा इस स्थिति में अपना संयम और निरंतर मेहनत से वह आदिवासी और दलित महिलाओं के उत्थान के लिए सेवारत है। दस बाई बारह के छोटे से कमरे में अभिसार इनोवेटिव नामक छोटा से गृहउद्योग के माध्यम से दलित, आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षण देकर महिला सशक्तिकरण का प्रयास कर रही है।

चंद्रपुर जिले के नागभीड तहसील के सावरंगाव निवासी एक किसान परिवार के घर जन्मी मिनाक्षी की इच्छा उच्च शिक्षा प्राप्त कर सिविल इंजीनियर बनने की थी किंतु आज महज 28 वर्ष की उम्र में उन्होंने देश और दुनिया में चंद्रपुर को पहचान दी है।