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    • भीषण गरमी में लोगों को होगी परेशानी

    चंद्रपुर: कोरोना महामारी और लगाए गए लॉकडाऊन का असर प्याऊ संस्कृति पर पड़ा है. शहर में इस साल भी गिनती के प्याऊ लगाये गए है. कोरोना संक्रमण के पूर्व से ही प्याऊ संस्कृति धीरे धीरे लुप्त होती जा रही थी. अब कोरोना ने जो रही सही कसर थी. वह भी पूरी कर दी है. इस बार शहर में कहीं भी प्याऊ नजर नहीं आ रहे है. यहां तक की बस स्टैंड परिसर में प्रतिवर्ष लगाया जानेवाला प्याऊ इस बार नहीं लगाया गया है ऐसे में यात्रियों को पेयजल के लिए परेशानी उठानी पड़ रही है. बोतलबंद पानी के रिवाज ने प्याऊ संस्कृति को पूरी तरह से समाप्त करके रख दिया है.

    ग्रीष्मकाल शुरू होते ही सामाजिक संगठनों द्वारा चौराहों पर, सार्वजनिक जगहों पर प्याऊ की व्यवस्था कर सामाजिक दायित्व निभाती है परंतु निरंतर सेवा देनेवाले आदमी नहीं मिल पाने के कारण लगाये गए प्याऊ 15 दिन या महीने भर में बंद कर दिए जाते है. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गिने चुने स्थानों पर ही प्याऊ नजर आ रहे है.

    लगभग एक दशक पूर्व तक ग्रीष्मकाल शुरू होते ही हर चौराहे, गली पर एक बांस की झोपड़ी और उसके ऊपर प्याऊ लिखा दिखाई देता था.परंतु अब चंद्रपुर शहर में कई मकानों और झोपड़ी के सामने एक तख्ती, प्लेट पर लिख दिखाई देता है, यहां ठंडा पानी पाऊच मिलेगा,कुछ वर्षों पूर्व तक किसी प्यासे को पानी पिलाकर सेवा की भावना पर अब व्यवसायिक हावी हो गई है.

    आम तौर पर ग्रीष्मकाल के शुरू होते मार्च से जून तक हर जगह प्याऊ दिखाई देते थे. एक छोटी सी झोपड़ी, झोपड़ी के बार एक लकडी की पाटिया पर रखे कुछ गिलास और भीतर एक व्यक्ति पानी देने के लिए खड़ा रहता था, जो भीतर रखे चार पांच बड़े बड़े रांजन से पानी लोगों को देता और लोग प्यास बुझाकर अनचाहे प्याऊ लगानेवालों को आशीष देते. किसी प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा दूसरा पुण्य बुझाकर अनचाहे प्याऊ लगाने वालों को आशिष देते.

    किसी प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा दूसरा पुण्य नहीं होता है, इस कारण राजा महाराजाओं के काल से प्याऊ की परंपरा चली आ रही है. उस काल में कुएं पर एक बाल्टी और रस्सी रखी होती थी. जिससे राहगीर कुएं पर बाल्टी से पानी निकालकर अपनी प्यास बुझाता और अपनी राह चल देता. प्याऊ के सामने भी जिस संस्था अथवा समाजसेवी द्वारा प्याऊ लगाया है उसका नाम लिखा होता था.

    वर्तमान समय में केवल संस्थाओं द्वारा ही प्याऊ शुरू किए जा रहे है, जिससे समाजसेवा के साथ संस्था का प्रचार होता है. शहरों के बस स्टैंड अथवा ऐसे स्थान जहां अक्सर लोगों का आना जाना लगा रहता है ऐसी जगह पर प्रतिवर्ष किसी संस्था द्वारा प्याऊ शुरू किया जाता है. इस कारण वर्षों से उस जगह पर उनका प्याऊ है और प्रतिवर्ष उनके प्याऊ शुरू करने की वर्ष बढते जा रहे है कि फलां बस स्टैंड पर संस्था के माध्यम से एक दशक से प्याऊ के माध्यम से लोगों की सेवा की जा रही है. इस बार तो चंद्रपुर मुख्य बस स्टैंड से लेकर जिले अन्य बस स्टैंड पर भी संस्थाओं की प्याऊ लगाने की व्यवस्था भी खंडित हो गई है.

    इन दिनों मध्यवर्गीयों में आधुनिक सुख सुविधा की चीजें उपलब्ध है जिसमें एक फ्रीज शामिल हो गया है, ग्रीष्मकाल में लोगों जोरों की प्यास लगती ही है, इस कारण लोग अपने घर के दरवाजे के सामने अथवा दर्शनीय स्थान पर यहां ठंडा पानी पाऊच मिलेगा यह तख्ती लटकाये रखते है. एक समय पर लोग राहगिरों को पानी पिलाने के लिए प्याऊ खोलते थे लेकिन उसकी जगह व्यवसाय ने ले ली है. यह बात जायज है कि बिजली का बिल आता है और पानी की पाऊच भी कुछ पैसों ही खरीदकर रूपयें में बेचते है.

    ग्रीष्मकाल में संस्था-दयालूओं द्वारा लगाये जानेवाले प्याऊ की संख्या नगण्य होने से बोतलबंद पानी की मांग बढ गई है. आज 12 से 15 रूपये लीटर का बोतलबंद ठंडा पानी लोग शौक से खरीद रहे है. इन कारण बोतलबंद पानी का कारोबार तेजी से बढ रहा है और कई कंपनियों ने इस व्यवसाय की ओर कदम बढाये है जिससे बोतलबंद पानी कंपनियों में प्रतिस्पर्धा निर्माण हो गई है. गर्मियों में बोतलबंद पानी और पाऊच की बढती डिमांड के चलते नियमों को ताक पर रखकर कारोबार किया जा रहा है.