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चंद्रपुर. जिले के लोग इन दिनों अलग ही दहशत में जी रहे हैं. जंगल से सटे खासकर ताड़ोबा अभयारण्य से सटे गांवों में बाघ और तेंदुओं के हमलों की घटनाएं बढ़ गई हैं. अब तक इसमें कई लोग मारे गए हैं. वन विभाग ने कई बार बाघों-तेंदुओं को पकड़ा भी है, लेकिन फिर भी हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. अभी बारिश का मौसम है. खेतों में बुआई के कार्य शुरू हो चुके हैं. जिले में कई खेत जंगल से सटे हैं. ऐसे में ग्रामीणों के सामने एक तरफ मौत, तो दूसरी ओर पेट की समस्या खड़ी है.

वनों से जुड़ी जिंदगी
शरीर में सिहरन दौड़ा देने वाली दहशत में जंगलों के करीब बसी बस्तियां जी रही हैं. कहीं कोई बाघ का शिकार हो रहा है, तो कहीं बाघ ग्रामीणों के कोप का शिकार बन रहा है. बाघ और मानव संघर्ष की सर्वाधिक घटनाएं बाघ अभयारण्य ताड़ोबा और उसके आसपास सटे जंगलों में हो रही हैं. जनवरी से लेकर अब तक जिले में बाघ के हमले में 16 लोगों ने जान गंवाई हैं. एक की तेंदुए ने जान ली. इसी तरह बाघ के शिकार के मामले भी सामने आए हैं. चंद्रपुर जिला वनव्याप्त होने से जंगल में लोगों का आना-जाना आम बात है. वैसे भी सैकड़ों की संख्या में मजदूर जंगल में बांस और पेड़ों की कटाई के लिए जाते हैं. ग्रामीण जंगल में सूखी लकड़ियों के अलावा अपनी उपजीविका के लिए शहद, वन उपज के लिए भी जाते है. जंगल में मानव के लगातार बढ़ते हस्तक्षेप के कारण बाघ, तेंदुए समेत अन्य वन्यजीव अपना प्राकृतिक अधिवास छोड़कर ग्रामीण बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं.

16 लोगों की मौत
इस समय खरीफ का मौसम होने से खेतों में किसान व खेतिहर मजदूर काम कर रहे हैं. इस दौरान हर दूसरे या तीसरे दिन बाघ अथवा तेंदुए के हमले में किसी के मारे जाने की घटनाएं हो रही हैं. इन घटनाओं में अधिकांश घटनाएं ताड़ोबा और उसके पास के सटे जंगल में हो रही हैं. जनवरी से अब तक बाघ के हमले में मारे गए ग्रामीणों के कुल 16 मामलों में 7 मामले ताड़ोबा बफर क्षेत्र, 5 घटनाएं चिमूर जिले में हुई हैं. हाल ही में गोंडपिपरी के जंगल में बांस लेने पहुंचे एक व्यक्ति को बाघ ने शिकार बनाया. सप्ताह भर पूर्व तलोधी परिसर में एक महिला बाघ के हमले में मारी गई थी.

बाघ भी हो रहे गुस्से का शिकार
बाघ, तेंदुए, जंगली सुअर के रोज-रोज के हमलों से किसान त्रस्त हो गए हैं. वन विभाग से कोई मदद नहीं मिलती देख कई किसानों ने इससे बचने के लिए उपाय ढूंढ लिए हैं. कई किसानों ने अपने खेतों के चारों ओर तारों की बाड़ लगाकर उसमें करंट छोड़ दिया है. इसमें फंसकर कई बार बाघ, तेंदुए, जंगली सुअर और इंसान भी मारे गए हैं. ताड़ोबा में पिछले दिनों एक बाघिन और उसके शावकों को जहर देकर मारा गया. बाघ और तेंदुए के हमलों की घटनाओं ने सर्वाधिक किसान परेशान है. उनकी उपजीविका पर ही संकट मंडराने लगा है. वे अपनी जान जोखिम में डालकर खेतों में जाने के लिए विवश हैं.

शाम होते ही सन्नाटा
वनों से सटे गांवों में वन्य प्राणियों की जबरदस्त दहशत है. ब्रम्हपुरी, नागभीड़ तहसीलों के जंगल से सटे ग्रामों में तो शाम होते ही सन्नाटा छा जाता है. आधी रात को यहां बाघों की गर्जना की आवाजें सुनाई देती हैं. सप्ताह भर पूर्व नागभीड़ तहसील के एक गांव में बाघ ने घुसकर उपद्रव मचाया था. उसे बेहोश कर काबू किया गया. ब्रम्हपुरी तहसील के हलदा, बोलधा, मुडझा, बल्लारपुर, कुडेसावली, पदमापुर, भूज, आवालगांव, कोसंबी, मुरपार तो बाघ के अधिवास वाले क्षेत्र हैं. यहां हर समय लोगों के सिर पर बाघ के रूप में मौत मंडराती रहती है.

वन विभाग से नाराजगी
हिंसक वन्य प्राणी गांवों की ओर रुख न करे इसलिए वन विभाग द्वारा कोई उपाय नहीं किए जाने से ग्रामीणों में काफी नाराजगी है. यह रोष बढ़ता जा रहा है. कई बार घटना के बाद वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को ग्रामीणों के रोष का भी सामना करना पड़ा है. ग्रामीणों का कहना है कि ताड़ोबा व उससे सटे जंगलों में बाघ व तेंदुए जरूरत से अधिक हो गए हैं. उन्हें जंगल में पर्याप्त शिकार नहीं मिल पा रहा. इसलिए वे गांवों की ओर रुख कर रहे हैं.