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    चंद्रपुर. ताड़ोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के तामसी तालाब के पास के घोसरी गांव समीप 19 जुलाई को डेढ़ वर्षीय बाघ मृत मिला था. इसके साथ ही जनवरी से अब तक जिले में 7 और राज्य में 22 बाघों की मौत हो चुकी है. बाघों की मौत के पीछे इलाकों के लिए आपस में होने वाली भिड़ंत, दुर्घटना के कारण बताए जा रहे हैं. कई बाघों की प्राकृतिक मौत भी हुई है.

    धन वर्षा के लिए अंगों का इस्तेमाल

    19 जुलाई को दोपहर करीब 2 बजे वन विभाग की टीम को डेढ़ वर्षीय मरा बाघ मिला था. वन विभाग की टीम उसे चंद्रपुर टीटीसी ले आई. इसके पूर्व 5 जून को मूल तहसील डोणी के जंगल में एक बाघिन मृत मिली थी. ताड़ोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प अंतर्गत बफर क्षेत्र के वन परिक्षेत्र मूल अंतर्गत जानाला उपक्षेत्र के डोनी गांव से डेढ़ किमी अंतर पर कक्ष क्र. 327 की घनी झाड़ियों में एक बाघिन दिखाई थी.

    वन विभाग के कर्मचारी लगातार उस पर नजर रखे थे. किंतु 4 दिनों तक उसमें कोई हलचल नहीं होने पर उसके पास जाकर देखा, तो वह मर चुकी थी. 7 जून को सिंदेवाही तहसील के मरेगांव नियतक्षेत्र के कक्ष क्र. 261 में बाघ के अवयव मिले थे. पूछताछ के बाद 2 आरोपियों ने स्वीकार किया था कि धन वर्षा के लिए आरोपी बाघ के अंग ले गए थे, किंतु उन्होंने बाघ का शिकार नहीं किया था.

    अर्जुनी कोकेवाड़ा में हुई भिड़ंत

    8 जून को राजुरा वन परिक्षेत्र के विहिरगांव उपक्षेत्र तथा नियतक्षेत्र 172 में नर बाघ मरा हुआ मिला था. 9 फरवरी को ताड़ोबा अंधारी बाघ प्रकल्प के बफर वनक्षेत्र के आष्टा बीट के शेगांव समीप अर्जुनी कोकेवाड़ा परिसर के एक खेत में बाघ मृत  मिला. इसकी आयु ढाई से तीन वर्ष थी. वन विभाग ने 2 बाघों के संघर्ष में बाघ की मृत्यु हुई. इसके पूर्व 29 जनवरी को भद्रावती रेंज के छिपरला गांव के कम्पार्टमेंट क्र. 210 में बाघ मृत मिला था.

    घटनास्थल पर ही बाघ का पोस्टमार्टम कर उसे जला दिया गया था. इस बाघ की प्राकृतिक मौत होने की जानकारी वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने दी थी. उसके दांत, नाखून, पूंछ आदि सभी सलामत थे. इसलिए वन विभाग ने दावा किया बाघ की मौत प्राकृतिक रूप से हुई. उसकी मौत 7 से 8 दिन पहले होने से शरीर का काफी हिस्सा सड़ चुका था. गत माह नागपुर के गोरेवाड़ा में ताड़ोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के खली नामक बाघ की मौत हो गई थी. वह जिस तरह से दिखता था, उसी कारण उसका नाम खली पड़ा था.

    अंधश्रद्धा के चलते बाघों का शिकार

    सिंदेवाही में वन विभाग की टीम ने 2 आरोपियों को बाघ के अवयवों के साथ धरदबोचा था. पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों ने बताया था कि बाघ के अवयव धन वर्षा के लिए बाघ के नाखून, बाल, दांत और हड्डी का प्रयोग किया जाता है. इसके अलावा अनेक प्रकार की अंधश्रद्धा के चलते बाघ का शिकार किया जाता है, जो चिंताजनक है.

    200 से अधिक बाघ

    वन विभाग के अनुसार चंद्रपुर जिले में 200 से अधिक बाघ हैं. कई बार बाघ किसी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं और कई बार बाघों की आपसी भिड़ंत में उनकी मौत हो जाती है.