Soybean arrivals compared to last year

इस वर्ष सितंबर के महीने में आई बरसात की वजह से सोयाबीन की फसल पर प्रतिकूल परिणाम पड़ा है।

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  • लौटते मानसून और एक विशेष बीज से पैदावार प्रभावित

चंद्रपुर. इस वर्ष सितंबर के महीने में आई बरसात की वजह से सोयाबीन की फसल पर प्रतिकूल परिणाम पड़ा है। नतीजा अक्टूबर महीने में गत वर्ष 2000 क्विंटल प्रतिदिन होने वाली आवक इस वर्ष औसतन 250 से 300 क्विंटल पर सिमट गई है। इसका प्रमुख कारण फसल की पैदावार का कम होना है।

जिले में सरकार नहीं करती सोयाबीन की खरीदी

चंद्रपुर जिले में आमतौर पर सोयाबीन की खरीदी निजी व्यापारी ही करते है सरकार खरीदी केंद्रों में जिले से तुवर,चना और कपास की खरीदी होती है। हर वर्ष की भांति फिलहाल तो सरकार ने सोयाबीन की खरीदी नहीं शुरु की है। किंतु निजी व्यापारियों ने 1 अक्टूबर से खरीदी शुरु की है।

बुधवार को ” 3,900 क्विंटल में खरीदा गया सोयाबीन

1 अक्टूबर 2020 से वरोरा तहसील के पांच केंद्रों में सोयाबीन की खरीदी शुरु की गई। पारस एग्रो प्रोसेसर्स के प्रो. अमोल मुथा ने बताया कि पहले दिन 3,600 रुपए क्विंटल के दाम से खरीदी की गई जो बढकर 3,975 रुपए क्विंटल तक गई थी। किंतु आज बुधवार को 3,900 रुपए क्विंटल के दाम से सोयाबीन की खरीदी शुरु की गई है। इसके अलावा वरोरा के बालाजी एग्रो, मालु दाल मिल, कांचनी फार्म और कृषि उपज बाजार समिति वरोरा के कुछ व्यापारी भी सोयाबीन की खरीदी करते है। वरोरा तहसील के माढेली, शेगांव, चिमूर, चंद्रपुर, भद्रावती, राजुरा, कोरपना आदि स्थानों पर भी सोयाबीन की खरीदी की जाती है। अन्य सेटरों पर भी लगभग इसी औसत से सोयाबीन की आवक हो रही है।

लौटते मानसून और विशेष बीज से पैदावार में गिरावट

लौटते मानसून के दौरान सितंबर में आई बरसात और एक विशेष कंपनी के बीज की अधिक बुआई किये जाने से सोयाबीन की पैदावार प्रभावित हुई है। कंपनी के लोक लुभावन दावे में फंसकर किसानों ने बीजों की बुआई की थी। किंतु सोयाबीन के पौधों की बहुत कम फल्ली लगी इसके अलावा जब पौधों को फल्ली लगने का समय था उसी समय लौटते मानसून की बरसात की वजह से सोयाबीन की पैदावार में भारी गिरावट आई है।

किसानों को नगदी भुगतान

खरीदी केंद्र पर जो किसान सोयाबीन बेचने आ रहे है उन लोगों को वर्तमान समय पर रुपयों की आवश्यकता है इसलिए उन्हे नगदी ही भुगतान किया जा रहा है। आने वाले समय पर यदि आवक बहुत अधिक बढ़ गई तो फिर भुगतान का तरीका सोचना पड़ेगा। किंतु अभी तो त्योहारों का समय पर और किसानों को भी रुपयों की आवश्यकता है इसलिए उन्हे नगदी भुगतान किया जा रहा है।