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    • कृत्रिम जलस्त्रोतों से जानवरों को होगी जलापूर्ति
    • तालाबों में पानी कम कीचड़ आने लगा है

    चंद्रपुर: बीते वर्ष औसत से भी कम बारिश का असर जिले भर में अभी से जलसंकट के रूप में उभर रहा है इससे बाघों के लिए दुनिया भर में प्रसिध्द ताड़ोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प भी अछूता नहीं है. यहां भी इस वर्ष मार्च माह में ही सभी प्राकृतिक जलाशय सूखने लगे है और ऐसे में वन्यप्राणियों को पानी उपलब्ध कराने के लिए ताड़ोबा प्रबंधन को फिर से टैंकरों का सहारा लेना पड़ सकता है. हालांकि कृत्रिम जलाशयों के पास बोरवेल की व्यवस्था की गई है. जो कि अपर्याप्त है.संभावित जलसंकट के मद्देनजर ताड़ोबा_अंधारी प्रबंधन ने उपाययोजना शुरू कर दी है. प्राकृतिक तालाबों और नालों में पानी के बजाय कीचड़ नजर आ रहा है.

    उल्लेखनीय है कि ताड़ोबा_अंधारी व्याघ्र प्रकल्प नदी, नाले, झरने, तालाब, पत्थर बांध और सीमेंट के पक्के बांध ऐसे प्राकृतिक और कृत्रित जलस्त्रोत है. तीव्र गर्मी में प्राकृतिक जलस्त्रोत पूरी तरह से सूख जाते है इस समय कृत्रिम रूप से तैयार किए गए जलस्त्रोतों अर्थात वॉटर होलों में सौर उर्जा के माध्यम से बोरिंग से या फिर टैंकर से पानी दिया जाता है.

    इस बार काफी कम बारिश होने से प्राकृतिक जलस्त्रोतों ने दम तोड़ना शुरू कर दिया है. यह जलस्त्रोत सूख जाने से और वैकल्पिक पानी की व्यवस्था नहीं किए जाने से वन्यप्राणियों के जान पर बन आ सकती है. इसके लिए प्रकल्प प्रबंधन ने उपलब्ध टैंकरों के माध्यम से जलापूर्ति की सुविधा की है. प्रतिवर्ष ताड़ोबा प्रबंधन द्वारा टैंकर के माध्यम से यहां जलापूर्ति करता है.

    हर वर्ष ग्रीष्मकाल में जब सभी प्राकृतिक जलस्त्रोत सूख जाते है उस समय इन जलस्त्रोतों में पास बने कृत्रिम पानी के टांकों में सौरउर्जा पंपों की सहायता से भूमिगत पानी छोड़ा जाता है यह दो टाईम सुबह और शाम को दिया जाता है. परंतु इस बार भूगर्म में भी पानी की मात्रा कम होने से टैंकर से ही जलापूर्ति करना प्रबंधन की मजबूरी होगी.

    जलसंकट का अंदेशा होने से प्रबंधन ने कुछ नए बोरवेल किए है जहां सौरउर्जा के माध्यम से जलापूर्ति की जाएगी. इन बोरवेल पर सोलरपंप लगाये जाएंगे. वहीं ताड़ोबा, तैलिया, जामनी जैसे बड़े तालाबों में अब भी पानी शेष है. जबकि छोटे सभी तालाब और नाले पूरी तरह से सूखने की स्थिति में है यहां पानी के बजाय दलदल और कीचड़ नजर आरहा है.

    ताड़ोबा प्रकल्प के 625 चौरस किमी फैले क्षेत्र में बाघ, तेंदूए सहित हिरण, सांबर, नीलगाय, बायसन, भालू, जंगली बिल्ली, बंदर समेत कई जानवर है, भीषण गर्मी में प्राकृतिक और कृत्रिम जलाशयों के पास बाघ अपने परिवार के साथ डेरा डाल देते है ऐसे में अन्य प्राणियों के लिए जान पर खेलकर यहां से जल पीना पड़ता है ऐसे में पर्यटकों के लिए बाघों की दर्शन काफी सुलभ हो जाते है.

    पानी के खोज में अन्य जानवर इधर उधर भटकते है जिससे तेज रफ्तार वाहनों के चपेट में आकर उनकी मौत होने का खतरा बढ जाता है साथ ही ग्रीष्मकाल में ताड़ोबा से सटे ग्रामों में मानव_ वन्यप्राणियों के बीच संघर्ष की घटनाएं भी बढ जाती है. इस सब पर अंकुश लगाने के लिए ताड़ोबा_अंधारी व्याघ्र प्रकल्प उपाययोजना कर रहा है.