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    चंद्रपुर. राज्य में  ख़ासकर चंद्रपुर जिले में  बाघों की संख्या में निरंतर हो रही वृद्धि तथा इसके चलते मानव वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष की घटनाओं के मद्देनजर ताडोबा अभयारण्य का विस्तार करने का निर्णय राज्य सरकार ने लिया है. इसके लिए ताडोबा से सटे 2 गांवों का पुनर्वास करने की भी तैयारी की जा रही है.

    मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में उनके मुबई स्थित वर्षा निवासस्थान पर सोमवार हुई महत्वपूर्ण बैठक में मुख्यमंत्री ठाकरे ने इस संदर्भ में तत्काल कदम उठाते हुए प्रस्ताव पेश करने के निर्देश दिए.

    वन विभाग के कामों का जायजा लेने आयोजित इस बैठक में बताया गया कि, राज्य में विशेषतः चंद्रपुर जिले में बाघों की संख्या में लगातार वॄद्धि हो रही है. राज्य में फिलहाल 312 बाघ मौजूद है, इस संख्या में प्रतिवर्ष बढ़ोतरी का अनुमान है. 

    बाघों की निरंतर बढ़ती संख्या से चंद्रपुर जिले में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाओं में भी चिंताजनक रूप से बढ़ोतरी हो रही है. ऐसी घटनाओं पर समय रहते रोक लगाने की आवश्यकता है. 

    मुख्यमंत्री ने वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि, मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए ताडोबा क्षेत्र की सीमा बढाना अनिवार्य हो गया है, इसके लिए ताडोबा से सटे गांवों का आवश्यकता के अनुसार पुनर्वास करना भी जरूरी हो गया है.

    उन्होंने निर्देश दिए कि, गांवों के पुनर्वास का तत्काल प्रस्ताव तैयार करें तथा पुनर्वासित ग्रामीणों को नगद में क्षतिपूर्ति देने का भी प्रस्ताव तैयार करें.

    मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि, खुले कुंए में  गिरने से बाघ तथा अन्य जानवरों की मौत होने की घटनाएं भी बढ़ती जा रही है. ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इस दिशा में तत्काल प्रभाव से उपाय करने की आवश्यकता है. खुले कुंओं को संरक्षक दीवार बनाने से ऐसी घटनाएं रोकी जा सकती है.

    बैठक में उद्योग मंत्री सुभाष देसाई, पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे, वन राज्यमंत्री दत्तात्रय भरणे, अपर मुख्य सचिव आशीष कुमार सिंह, वन विभाग के प्रधान सचिव मिलिंद म्हैसेकर, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव विकास खारगे, पर्यावरण विभाग की प्रधान सचिव मनीषा म्हैसेकर, मुख्यमंत्री के सचिव आबासाहब जरहाड आदि उपस्थित थे.

    बाघ ज्यादा, जंगल पड़ रहा है कम

    उल्लेखनीय है कि ताड़ोबा-अंधारी बाघ परियोजना में प्रतिवर्ष बाघों की संख्या में इजाफा हो रहा है. यह एक संतोषजनक बात है. लेकिन बाघों की संख्या बढने से उन्हें अधिवास क्षेत्र कम पड़ने लगा है. हालात यह है कि बाघ अब रिहायशी क्षेत्र में घुसने लगे है.  बाघों की निरंतर संख्या बढ रही है. ताड़ोबा में पिछले एक दशक में 100 बाघ बढे है. 

    वर्ष 2010 में 17 बाघ थे, 2012 में 49 , 2013  में 51, 2014 में  72, 2015 में 88, 2016 में  90 , 20117  मे 88, 2018 में 100 से अधिक और विगत दो वर्षों से कोरोना संकट के कारण बाघों की गणना नहीं हो पायी है परंतु इस दौरान बाघ कम होने के बजाय बढे ही है. इस समय पूरे ताड़ोबा में ही 100 से अधिक बाघ मौजूद है.

    ताड़ोबा अभयारण्य 116.55 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है. जब यह क्षेत्र कम पडने लगा था तब ताड़ोबा के साथ अंधारी का 508.85 वर्ग किमी क्षेत्र जोड़ा गया तथा 625 वर्ग किमी क्षेत्र की संयुक्त रूप से ताड़ोबा अंधारी परियोजना स्थापित की गई. बाघ तथा अन्य वन्यजीवों के लिए जब यह क्षेत्र कम पडने लगा तब ताड़ोबा अंधारी क्षेत्र से जुड़ा 1107.77किमी का बफर क्षेत्र भी इस परियोजना में शामिल किया गया. इतने विस्तार के बाद भी वन्यजीवों खासकर बाघों के लिए अधिवास क्षेत्र निरंतर कम साबित होने लगा है. 

    वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार एक बाघ का अपना अधिवास क्षेत्र 60 से 100 वर्ग किमी का होता है. पेड़,पौधों पर मलमूत्र विसर्जन या पेड़ों पर नाखून की खरोच के निशान से बाघ अपना अधिवास क्षेत्र निश्चित करता है. जिससे मादा बाघ के अलावा अन्य किसी नर बाघ का प्रवेश उस बाघ को अमान्य होता है. यही वजह है कि दोनों नर बाघों में कई बार खूनी संघर्ष होता है.

    ताड़ोबा में एक मादा बाघ आमतौर पर 4 शावकों को जन्म देर रही है. 2 वर्ष में यह शावक बड़े होते है. और अपने स्वतंत्र रूप से नया अधिवास क्षेत्र तलाशने में यह पूर्णत: विकसित बाघ जुट जाते है. ताड़ोबा में बाघों की संख्या में निरंतर हो रही वृध्दि तथा सिमटते जा रहे उनके अधिवास को देखते हुए ताड़ोबा क्षेत्र बढना जरूरी हो गया था. इसके मद्देनजर ताडोबा अभयारण्य का विस्तार करने का निर्णय राज्य सरकार ने लिया है.