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भिसी: आज के युग में हरक्षेत्र में विज्ञान ने अपनी पकड़ बनाई है. विज्ञान के आधारपर आधुनिक यंत्र सामग्री का उपयोग बडे पैमाने पर किया जाता है. आधुनिक यंत्रो के उपयोग से खेती भी अछू्रती रही है. आज खेती का हर कार्य जैसे हल चलाना, बुआई करना, कचरा निकालना, फसल काटना, अनाज निकालना तथा फसल घर लाने तक सभी कार्य आधुनिक यंत्रो से किया जाता है. परंतु इन सभी कार्यो में एक कार्य ऐसा है जो आधुनिक यंत्रो से परे है. वो कार्य है फसल की रक्षा करना  इस कार्य के लिए किसानों को आज भी  खेती पारंपारिक रक्षाकर्ता पर निर्भर रहना पडता है. उस रक्षणकर्ता का नाम है‘बिजूका’.

आज खेती के सबसे महत्वपूर्ण कार्यो में से एक कार्य है खेती की रखवाली करना. जिस समय फसल मे दाने लगने लगते है उस समय से फसल काटने तक फसल की पक्षियों से रक्षा करने का कार्य बिजूका करता है. रबी के मौसम मे खेत में टमाटर, बैंगन, लहसुन, प्याज, गेंहू, गोभी, चना, मटर, मूंग, लखोरी जैसे  फसल किसानों ने लगा रखी है. इन सभी फसल की रखवाली करना अकेले किसान के बस में नही होता. फसलों पर रोग लगने पर उस पर कीटनाशक का छिडकाव कर फसल बचाई जा सकती है. परंतु पंक्षियों व्दारा होने वाले नुकसान से बचने के लिए आज तक कोई भी आधुनिक मशीन या यंत्र विकसित नहीं किया गया. ऐसे मे किसानों को पारंपारिक उपाय ही अपनाने पडते है.

अनेक जगहों पर किसानों द्वारा रस्सी में  पत्थर रखकर काफी ऱफ्तार से गोल – गोल घुमाकर पक्षियों को निशाना बनाया जाता है. इसे ग्रामीण इलाके में ‘गोफन’ कहा जाता है. किंतु यह तरीका कई बार काफी खतरनाक साबित होता है. अनेक बार रस्सी मे लपेटा हुआ पत्थर गलत दिशा मे जाकर गलती से नुकसान भी पहुंचाता है. फसलों कि सुरक्षा के लिए इससे ज्यादा ‘बिजूका’ही प्रभावशाली तथा सुरक्षित उपाय है.

बिजूका बनाने का तरीका 

दो लकडीयों को जोड ( प्लस ) के चिन्ह में बांधकर उसपर धान की तनस लपेट कर उसपर पैंट शर्ट पहनाया  जाता है. मिट्टी के  पुराने घडे से बिजूका का सिर बनाकर उसे मनचाहा रूप दिया जाता है. मिट्टी के घडे को विविध रंगो से रंगकर बिजूका का हंसता हुआ नुरानी चेहरा बना सकते है या फिर उसे खलनायक भी बनाया जा सकता है. पुरी तरह मानव निर्मित यह ‘बिजूका’ दिन रात बिना ऊर्जा के खेती की रखवाली करता है. रात के अंधेरे जिसे देखकर अंजन आदमी के पसीने छूट जाते है वही दिन के उजाले मे इसे देख कर पंछी फसल पर नहीं बैठते है. किसानों द्वारा शून्य खर्चे पर बनाया गया बिजूका पुरातन काल से लगाकर आज की आधुनिक खेती का रक्षणकर्ता बना है.

गाना गाने वाला ‘बिजूका’

बाजार में अनेक तरह के आइपैड, एफ एम बॉक्स आसानी से उपलब्ध हो जाते है. अनेक किसान इन आइपैड तथा एफ एम बॉक्स को बिजूका के साथ बांध देते है. इनमे बजने वाले गानों से दिन भर खेती में काम करने वाले मजदुरों का मनोरंजन भी होता है साथ ही रात में जानवरों से खेती की सुरक्षा. इसमे से निकलने वाली आवाज से जानवर दूर से ही भाग खडे होते है.