अपने ही प्राकृतिक अधिवास में असुरक्षित हो रहे है बाघ

  • इस वर्ष अब तक 8 बाघों की मौत

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– एजाज अली

चंद्रपुर. बाघों की भूमि के रूप में मशहूर विदर्भ में पिछले कुछ माह से बाघों की असामायिक मौतों की घटनाएं निरंतर बढती ही जा रही है. बाघों की मौत का यह सिलसिला जहां एक ओर बदस्तूर जारी है. वहीं दूसरी ओर वन प्रशासन इस संदर्भ में बेफिक्र नजर आ रहा है. जिले में इस वर्ष बाघ की 8 वीं मौत की घटना सिंदेवाही के रत्नापुर क्षेत्र में हुई है. 

समूचे महाराष्ट्र में विदर्भ में एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां बाघों का प्राकृतिक अधिवास है. राज्य में जितनी भी बांध परियोजनाएं बनाई गई है,उनमें  भी पेंच, मेलघाट तथा ताड़ोबा-अंधारी बाघ परियोजनाएं विदर्भ में ही अस्तित्व में है, हाल ही में जिले में घोड़ाझरी और कन्हालगांव दो नये अभयारण्य घोषित हुए है,लेकिन दुखद पहलू यह है कि विदर्भ की यह भूमि ही बाघों के लिए जानलेवा साबित हो रही है.

इस वर्ष 8 बाघों की मौत

साल 2020 के शुरूआत में जनवरी में सावली में एक नाले के पास पाईप में बाघ के शावक की सड़ी गली लाश मिली थी,  मार्च में बल्लारपुर तहसील के कोठारी स्थित एफडीसीएम के जंगल में दो साल के बाघ की वाहन के चपेट में आने से मौत हो गई थी. ताड़ोबा-अंधारी बाघ परियोजना अंतर्गत आनेवाले मोहुर्ली क्षेत्र के कोंडेगांव में अवैध रूप से शराब बेचनेवालों ने जहर देकर एक बाघिन और उसके दो शावकों की जान ले ली थी, ताड़ोबा में एक बाघ को उपद्वव मचाने के चलते पकड़ा गया था जिसकी गोरेवाडा में उपचार के दौरान मौत हो गई. नागभीड़ में एक वृध्द बाघिन को पकड़ा गया था जिसकी भी गोरेवाडा में उपचार के दौरान मौत हुई.

अक्टूबर 2020 में ताड़ोबा अंधारी बाघ परियोजना की मयूरी नामक बाघिन अपने तीन शावकों को छोड़कर गायब है. उसका भी शिकार होने की आशंका जतायी जा रही है. 12 दिसंबर को सिंदेवाही में बाघिन का शव बरामद हुआ है जिसकी मृत्यु का कारण अब तक पता नहीं चला है.राजुरा में उपद्वव मचानेवाले बाघ को डेढ वर्षों के मशक्कत के बाद पकड़ा गया. इसके अलावा रत्नापुर, पिंपलपुर, मोहुर्ली इन ग्रामों में बाघों के शिकार के कई साल पूर्व के मामले सामने आये है जिसमें कुछ लोगों को बाघ के अंगों के साथ पकड़ा गया है. वर्तमान में गोंडपिपरी तहसील के डोंगरगांव_सुकवासी, चंद्रपुर तहसील के कोयला क्षेत्र ढोरवासा में बाघ सपरिवार भटकते हुए पाये जारहे है.

बाघों की असामायिक मौत चुनौती

खेतों की फसल अन्य वन्यजीवों से बचाने के चक्कर में किसानों द्वारा अपनाई जा रही है बिजली करंट तथा जहरखुरानी की तरकीब बाघों के लिए जहां जानलेवा साबित हो रही है, वहीं दूसरी ओर वन विभाग निरंतर बढती ऐसी घटनाओं को रोकने में विफल साबित हो रहा है. बाघों की ऐसे असामायिक मौतें वनप्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है. बाघों के संरक्षण के लिए वनविभाग यूं तो बेहद प्रयास किए जाने का निरंतर दावा करता जा रहा रहा है किंतु सारे प्रयास फुस्स साबित होते जा रहे है.

बाघों का ग्रामों की ओर पलायन

सिमटते जा रहे जंगल, आवागमन के सिकुडते जा रहे मार्ग, भोजन की कमी, घटते जलस्त्रोत के चलते वन्य जीव मानव बस्तियों की तरफ रूख करते जा रहे है और यही वजह है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में वृध्दि होती जा रही है. जंगलों में मानवों का बढता हस्तक्षेंप भी ऐसे संघर्ष के लिए जिम्मेदार है. हैरत की बात यह है कि यह सब कुछ जानते हुए भी वनविभाग सक्रिय नजर नहीं आ रहा है. संघर्ष का यह दौर अगर अभी नहीं संभला तो आनेवाले दिनों में स्थिति नियंत्रण से बाहर जाने से देर नहीं लगेगी.