जमाकर्ता बचे, निवेशक डूबे!, लक्ष्मी विलास बैंक प्रकरण में 98 हजार निवेशक चिंतित

  • एक सप्ताह में प्रतिबंध हटने की उम्मीद

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मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने देश के 94 साल पुराने संकटग्रस्त लक्ष्मी विलास बैंक (Lakshmi Vilas Bank) को डूबने से बचाने और इसके 20 लाख जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए जिस तरह डीबीएस बैंक (DBS Bank) में विलय का त्वरित निर्णय लिया है, वह काबिले तारीफ है. ग्लोबल रेटिंग एजेंसियों एसएंडपी (S&P), मूडीज (Moody’s) और फित्च (Fitch) ने भी इसे सराहनीय कदम बताया है. रिजर्व बैंक के फैसले से जमाकर्ताओं में उस तरह की घबराहट और अफरा-तफरी नहीं मची, जो यस बैंक (Yes Bank) और पीएमसी बैंक (PMC Bank) के मामले में देखी गई थी. 

केंद्रीय बैंक के इस कदम से लक्ष्मी विलास बैंक के लाखों जमाकर्ताओं की चिंता तो दूर हो गई है, लेकिन इसके 98 हजार शेयरधारकों (निवेशक) के हितों की धज्जियां उड़ रही हैं. क्योंकि विलय प्रस्ताव में लक्ष्मी विलास बैंक की पूरी इक्विटी पूंजी को राइट ऑफ यानी बट्टे खाते में डाला जाएगा. अर्थात शेयरधारकों के शेयरों की वैल्यू शून्य हो जाएगी. इसलि‍ए कई शेयरधारकों ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए अन्य विकल्प तलाशने का अनुरोध किया है.   

RBI ने निभाया अपना दायित्व, SEBI भी आगे आए

लक्ष्मी विलास बैंक के निवेशकों का कहना है कि रिजर्व बैंक ने तो इस बार अपना दायित्व बखूबी निभाया है. बैंक जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है, उसने तुरंत विलय का प्रस्ताव रख जमाकर्ताओं के हित सुरक्षित कर दिए हैं. लेकिन भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) क्यों चुप है. निवेशकों की हितों की रक्षा करना सेबी का पहला दायित्व है. उसे इस मामले में तुरंत दखल देना चाहिए. बैंक यदि संकट में आया है तो उसके जिम्मेदार आम निवेशक तो नहीं है. बैंक के संकट में फंसने का दोषी तो लक्ष्मी विलास बैंक का मैनेजमेंट है, उसके मैनेजमेंट में शामिल शीर्ष अधिकारी और निदेशक हैं. तो फिर उनके कुप्रबंधन की सजा बैंक के निवेशकों को क्यों मिल रही है?  

एक सप्ताह में प्रतिबंध हटने की उम्मीद

भारतीय रिजर्व बैंक के विलय प्रस्ताव पर फीडबैक और ऑबजेक्शन यानी सलाह और आपत्ति दर्ज कराने की अंतिम तिथि शुक्रवार 20 नवंबर रखी गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि निवेशक अधिक विरोध नहीं दर्ज नहीं कराते हैं और रिजर्व बैंक उनकी आपत्ति को जमाकर्ताओं के हित में वैल्यू नहीं देता है तो 563 शाखाओं और 974 एटीएम वाले लक्ष्मी विलास बैंक का सिंगापुर के डीबीएस बैंक की भारतीय बैंकिंग कंपनी में विलय (मर्जर) को हरी झंडी मिल जाएगी. डीबीएस 2500 करोड़ रुपए की पूंजी तत्काल डालने को तैयार है. ऐसे में लक्ष्मी विलास बैंक पर लगा प्रतिबंध एक या दो सप्ताह में हट सकता है. मंगलवार को रिजर्व बैंक ने इस पर 16 दिसंबर तक पाबंदी लगा दी थी. इसके अंतर्गत जमाकर्ता केवल 25,000 रुपए तक की ही राशि निकाल सकते हैं.

निवेशकों को लगा जबरदस्त घाटा

बड़ी संख्या में कर्जों के डूबने और लगातार घाटे के कारण मार्च में लॉकडाउन के पहले से लक्ष्मी विलास बैंक की हालत खराब थी. वित्त वर्ष 2019-20 में बैंक को 836 करोड़ रुपए का भारी नुकसान हुआ था और इस साल भी पहली छमाही में 510 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा है. बैंक के डूबत कर्ज यानी एनपीए का स्तर 25% तक पहुंच गया है. बैंक की कुल इक्विटी पूंजी 336 करोड़ रुपए है, जो रिजर्व बैंक के प्रस्ताव से साफ हो जाएगी. इस कारण शेयर बाजार में भारी बिकवाली दबाव के चलते लक्ष्मी विलास बैंक के शेयरों में लगातार तीसरे दिन 10% का निचला सर्किट लगा और शेयर भाव 9 रुपए के नए न्यूनतम स्तर पर आ गया. बैंक ने वर्ष 2006 के बाद से 4 बार राइट निर्गम जारी कर अपने निवेशकों से पूंजी जुटाई है. पिछला निर्गम तो तीन साल पहले 112 रुपए के भाव पर जारी किया गया था. और अब शेयर 10 रुपए के नीचे आने से निवेशकों को जबरदस्त घाटा लगा है.