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    नयी दिल्ली: क्या कभी सुना है कि आपका साथी अपने शतक के करीब हो और आपको तब तक बाथरूम (Bathroom) न जाने दिया जाए जब तक वह शतकवीर न बन जाये यानी उनका शतक जब तक पूरा न हो। जी हाँ 1982 में पाकिस्तान के खिलाफ फैसलाबाद में एक मैच के दौरान ऐसा ही एक वाकया हुआ जिसे सुनकर आप जैसे क्रिकेट के प्रशंसक शायद अपनी अपनी हंसी नहीं रोक पाएंगे। 

    दरअसल इस मैच इस मैच में भारत की बैटिंग के दौरान आल टाइम क्लासिक सुनील गावस्कर (Sunil Gavaskar) 90 रन बनाकर क्रीज पर मौजूद थे और वह अपने शतक से सिर्फ 10 रन ही दूर थे। इसे बीच उनके साथी और युवा खिलाड़ी संदीप पाटिल (Sandeep Patil) बाथरूम के लिए अपनी कुर्सी से उठे। लेकिन, तब टीम के मैनेजर फतेह सिंह गायकवाड़ ने उन्हें बाथरूम नहीं जाने को कहा और वहीं उनके सामने बिठाए रखा। ऐसा इसलिए क्योंकि तब गावस्कर अपने शतक के बेहद करीब थे। 

    25 मिनट तक झेलनी पड़ी शर्मिंदगी :

    विदित हो कि तब टीम इंडिया में यह प्रचलन था कि जब भी कोई भी बल्लेबाज अपने शतक के करीब होगा तो उस वक्त टीम का कोई भी खिलाड़ी ड्रेसिंग रूम छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा। शायद यह अब भी प्रचलित है, इस पर विराट कोहली या रवि शास्त्री ही कुछ बता पाएंगे। खैर बेचारे संदीप पाटिल मरते क्या न करते, उन्होंने अपनी टीम मैनेजर की बात को माना और वापस अपनी जगह बैठ गए। लेकिन, उन्हें तब इस बात का बिल्कुल भी इल्म नहीं था कि गावस्कर अब अपना शतक पूरा करने और अगले 10 रन बनाने के लिए 1 घंटे का समय लेने वाले हैं।  

    गावस्कर के चलते पैंट हुई गीली :

    हालाँकि सुनील गावस्कर की सेंचुरी को पूरा करते हुए देखने का इंतजार पूर्व क्रिकेटर संदीप पाटिल को बहुत ही भारी पड़ा। एक तरफ पाटिल तो टीम मैनेजर की बात मानकर अपनी लघुशंका को कंट्रोल करने की पूरी कोशिश कर रहे थे। वहीं मैदान पर 97 पर बल्लेबाजी कर रहे गावस्कर को अगले 3 रन बनाने में पूरे 25 मिनट लगे। इधर जब तक गावस्कर ने अपनी सेंचुरी शान से पूरी की, उधर तब तक अपने जज्बातों को दबाये संदीप पाटिल की पैंट भी गीली हो चुकी थी।

    एक तरफ तो गावस्कर अपनी सेंचुरी मार गए थे, तो दूसरी तरफ संदीप पाटिल के मैच में पिच पूरी तरह गीली हो चुकी थी। इतना ही नहीं इस बात का जिक्र संदीप पाटिल ने खुद भी एक एक इंटरव्यू में किया था। हालांकि पाटिल ने तब यह भी बताया था कि वह गावस्कर का शतक देखने के लिए इतने बेताब रहते थे कि घंटों टॉयलेट रोककर अपनी जगह पर बैठे रहते थे।