Supreme court
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नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने 1993 की वोहरा सिमिति की रिपोर्ट (Vohra Committee Report) की पृष्ठभूमि में लोकपाल की देखरेख में, कथित ‘अपराध-राजनीति के गठजोड़’ की जांच कराने का अनुरोध करने वाली याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि ‘यह अव्यवहारिक’ है। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाओं से उद्देश्य की पूर्ति होनी चाहिए और चर्चा में आने के लिए दायर याचिकाओं को वह प्रोत्साहित नहीं करेगा। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul), न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी (Justice Dinesh Maheshwari) और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय (Justice Hrishikesh Roy) की पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय (Ashwani Upadhyay) से याचिका वापस लेने को कहा और साथ ही विधि आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखने की छूट दी।

इससे पहले उपाध्याय का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम लाल दास (Anupam Lal Das) ने कहा कि याचिका अपराधियों, राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के अपवित्र गठजोड़ से जुड़ी है। पीठ ने कहा कि रिपोर्ट दाखिल करने के बाद से अब तक दो दशक बीत चुके हैं। इस पर दास ने कहा कि वे छोटा कदम उठा रहे हैं और आज लोकपाल है लेकिन कोई साधन नहीं है और कोई जांच प्रकोष्ठ नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘आप अपने अनुरोध को देखिए, वे अव्यवहारिक हैं। यह आदर्श स्थिति जैसा है। यह ऐसा है कि मैं उम्मीद करता हूं कि हमारा देश दुनिया में शीर्ष पर होगा। आप इस पर किताब लिख सकते हैं, लेकिन इस पर याचिका दायर मत कीजिए।”

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘मैं ऐसी याचिकाओं को प्रोत्साहित नहीं करूंगा जो चर्चा पाने के लिए हैं। याचिका से उद्देश्य की पूर्ति होनी चाहिए।” इसके बाद दास ने शीर्ष अदालत से कहा कि वह अपनी याचिका वापस ले लेंगे लेकिन उन्हें विधि आयोग जाने की आजादी दी जानी चाहिए, जिसकी अनुमति अदालत ने दे दी। गौरतलब है कि राजनीति के अपराधीकरण और अपराधियों, राजनीतिज्ञों व नौकरशाहों के गठजोड़ का अध्ययन करने के लिए पूर्व गृह सचिव एनएन वोहरा (Home Secretary NN Vohra) की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी जिसने 1993 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।(एजेंसी)