तीनों चुनाव आयुक्त UP के, क्योंकि वहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव है

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    यद्यपि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है लेकिन फिर भी यह धारणा व्याप्त है कि वह सरकार के संकेतों पर चलकर चुनाव कार्यक्रम तय करता है चुनाव कब और कितने चरणों में कराए जाएं, इस संबंध में उसे केंद्र का इशारा रहता है. ऐसा आरोप है कि सरकार अपनी सुविधा से चुनाव आयोग के मार्फत चुनाव कराती है. बंगाल में चुनाव आयोग ने 8 चरणों में विधानसभा चुनाव कराया था जबकि अन्य 4 राज्यों में 1 या 2 चरण रखे गए थे. वजह यह मानी गई थी कि अनेक चरणों के कारण बीजेपी के शीर्ष नेताओं को बार-बार प्रचार का मौका मिले. यह अलग बात है कि इतना होने के बाद भी बंगाल में बीजेपी को कामयाबी नहीं मिल पाई. उत्तरप्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष व अभिनेता राज बब्बर ने ट्वीट में लिखा, ‘ये भी कमाल का संयोग है. फिलहाल चुनाव आयोग में तीनों चुनाव आयुक्त यूपी वाले हैं.’ 

    उन्होंने इस ट्वीट के साथ ही हैशटैग में यूपी इलेक्शन 2022 का जिक्र किया है. राज बब्बर के इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई. जो भी हो, यह सचमुच अटपटा लगता है कि तीनों चुनाव आयुक्त एक ही राज्य से हैं. क्या उनकी नियुक्ति के समय इस मुद्दे पर गौर नहीं किया गया? सुप्रीम कोर्ट में भी विभिन्न राज्यों के जज रहते हैं किसी एक राज्य के नहीं. आम तौर पर हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस भी किसी बाहरी राज्य के जज को बनाया जाता है. तात्पर्य यह है कि नियुक्ति में सावधानी रखी जाती है. जहां तक चुनाव आयोग की बात है, वह उस समय अत्यंत शक्तिशाली हो गया था जब टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे. 

    अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत उन्होंने कानून में उपलब्ध अपने सभी अधिकारों का सख्ती से इस्तेमाल किया. शेषन को अधिक ताकतवर होता देखकर सरकार ने उनके पर कतरने के लिए चुनाव आयोग त्रिसदस्यीय बना दिया था. इसके बाद से चुनाव आयोग का दबदबा कम होता चला गया. उसका रवैया केंद्र सरकार के लिए जरा भी असुविधाजनक नहीं रह गया बल्कि यह माना गया कि वह केंद्र के संकेतों के अधीन है. यूपी एक महत्वपूर्ण बड़ा राज्य है जहां किसी पार्टी की जीत तय करती है कि देश की राजनीति किस दिशा में जाएगी और कौन प्रधानमत्री बन सकता है. इसलिए राज बब्बर के कथन में सार है.