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कोई बड़ी कंपनी यदि अपने किसी प्रोडक्ट को लेकर झूठा दावा करे तो उसकी साख खतरे में पड़ जाती है. एप्पल (Apple) जैसी अमेरिका की दिग्गज आईफोन कंपनी ने अपने ग्राहकों को यह कहकर गुमराह किया कि उसका आईफोन  (iPhones) का मॉडल वाटरफ्रूफ (Waterproof) है. यह सरासर झांसेबाजी थी. यह दावा करना बिल्कुल बेतुका था कि एप्पल के अलग-अलग आईफोन मॉडल 4 मीटर तक पानी की गहराई में वाटर रेसिस्टेंट रहेंगे. स्वाभाविक है कि ऐसा दावा करने पर उसकी सत्यता को परखने के लिए कुछ लोग इस आईफोन को लेकर स्विमिंग पूल में उतरे होंगे तो किसी ने इसे पानी में डुबाकर देखा होगा. इससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ा होगा.

कंपनी का दोहरापन इस बात से साबित होता है कि उसने अपने डिसक्लेमर में कहा था कि फोन के तरल पदार्थ से होने वाले नुकसान के मामले में वारंटी को कवर नहीं किया जाएगा. एप्पल ने यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं किया कि आखिर किन परिस्थितियों में आईफोन का वाटर रेसिस्टेंट फीचर काम करेगा. आखिर कंपनी की कलई खुल गई. इटली की एंटी ट्रस्ट अथॉरिटी (एजीसीएम) ने आईफोन की वाटरप्रूफ क्षमता को लेकर भ्रामक या गलत दावा करने के लिए 10 मिलियन यूरो या लगभग 88 करोड़ रुपए का जुर्माना किया. इसके पहले भी एप्पल कंपनी पर अपने पुराने फोन स्लो करने के लिए उस पर जुर्माना किया जा चुका है. इसी प्रकार नामी कार निर्माता कंपनी ने भी ऐसा साफ्टवेयर लगाकर धोखाधड़ी की थी जो ईंधन के धुएं से होने वाले प्रदूषण को जानबूझकर कम बताता था.

इस तरह के हथकंडे अपनाकर ग्राहकों को झांसा देना निंदनीय है तथा यह अनुचित व्यापार प्रथा में आता है. कंपनियों को अपने व्यापार का दायरा बढ़ाने का अधिकार है परंतु यह झूठे दावों की बुनियाद पर नहीं होना चाहिए. कानून को भी ऐसे मामलों में अपना काम करना चाहिए. आखिर गोरेपन का प्रचार करने वाली फेयर एंड लवली क्रीम का नाम बदलना ही पड़ा. ग्राहकों से व्यवहार में सच्चाई और ईमानदारी अपेक्षित है क्योंकि झूठ की पोल कभी न कभी खुल जाती है और इससे कंपनी की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता को गहरी क्षति पहुंचती है.