कोरोना संकट के बीच 10वीं व 12वीं परीक्षाओं की चुनौती

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सीबीएसई ने 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं (CBSE 10th, 12th Exams) 4 मई से 10 जून तक कराने की घोषणा की है. यदि तब तक कोरोना संकट (COVID-19) नियंत्रण में आ जाता है तो ठीक अन्यथा परीक्षाएं कराना बड़ी चुनौती होगी. कोरोना का खतरा बरकरार रहते और ब्रिटेन से उसका नया स्ट्रेन आने को देखते हुए सरकार 10वीं की सीबीएसई परीक्षा के बारे में पुनर्विचार करे तो उचित रहेगा. लॉकडाउन लागू किए जाने की वजह से पिछले शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में 10वीं के छात्र अपने सभी पेपर नहीं दे पाए थे.

तब परीक्षा की तारीख बढ़ाकर 1 से 15 जुलाई के बीच कर दी गई थी लेकिन इसके बावजूद परीक्षा नहीं ली जा सकी. पालकों ने महामारी के खतरे को देखते हुए परीक्षा रद्द करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी थी. अब सीबीएसई ने बची हुई परीक्षा रद्द कर दी थी परंतु यह अधिसूचित किया था कि कक्षा 12वीं की सभी विषयों की ऐच्छिक परीक्षा ली जाएगी. तब 10वीं कक्षा के नतीजे बोर्ड द्वारा नियुक्त समिति के एसेसमेंट के आधार पर घोषित किए गए थे. इस शैक्षणिक वर्ष (2020-21) में भी सरकार 10वीं की परीक्षा रद्द कर आंतरिक एसेसमेंट फार्मूले से परीक्षाफल निकाल सकती है. उसे इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में टेलि-कनेक्टिविटी कितनी थी. कहीं बिजली की पूर्ति भी बाधित रही. इस फैसले में सामाजिक-आर्थिक पैमानों का भी ध्यान रखना होगा. कोरोना संक्रमण देखते हुए परीक्षा न लेना ही बेहतर है.

यदि परीक्षा ली ही जाती है तो फिर 2 गज की दूरी का पालन कराते हुए परीक्षा केंद्रों में तीन गुनी वृद्धि करनी होगी. पहले 12वीं के 11,22,961 छात्रों के लिए 5,000 परीक्षा केंद्र थे. अब इनकी तादाद बढ़ाकर 15,000 करनी होगी. खास बात यह है कि 2019-20 में बोर्ड 10वीं की परीक्षा के लिए पंजीकृत 18,85,855 छात्रों के लिए व्यवस्था नहीं कर पाया था. यदि 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं एक ही समय हुईं तो परीक्षा केंद्रों की भारी कमी पड़ेगी. 10वीं की परीक्षा को लेकर पहले भी सवाल उठाए जा चुके हैं. इस परीक्षा का महत्व आगे की पढ़ाई की शाखा चुनने की दृष्टि से है कि कौन आर्ट्स, साइंस या कॉमर्स लेना चाहता है. यह तर्क भी अपनी जगह है कि परीक्षा को ऐच्छिक बनाने से उसका स्तर गिर जाएगा. चूंकि परिस्थितियां अभूतपूर्व हैं और बच्चों का स्वास्थ्य महत्व रखता है, इसलिए ऐसे वक्त पर सामान्य मानदंड नहीं अपनाए जा सकते. इस स्थिति में 10वीं की परीक्षा आवश्यक आकलन प्रणाली का विकल्प रखकर रद्द की जा सकती है, जबकि 12वीं की परीक्षा सेंटर की संख्या बढ़ाकर और आवश्यक सावधानी का पूरा ध्यान रखते हुए ली जा सकती है.