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    कांग्रेस (Congress) ने हमेशा खुद को धर्मनिरपेक्षता का पैरोकार बताते हुए बीजेपी (BJP)को सांप्रदायिक पार्टी बताया. कांग्रेस व अन्य सिक्यूलर पार्टियों के लिए बीजेपी अछूत थी. यह सारा आडम्बर मुस्लिम वोट बैंक को अपने पास रखने और तुष्टिकरण के उद्देश्य से था वरना कांग्रेस के कितने ही नेता अंदर से धार्मिक थे लेकिन बाहर निकलने पर धर्मनिरपेक्ष होने का दिखावा करते थे. इन कांग्रेसजनों को खुद को हिंदू कहने में भी शर्म आती थी. कितने ही दशकों तक कांग्रेस का यही दाहरा रवैया बना रहा. इसके विपरीत बीजेपी ने शुरु से अयोध्या में भव्य राम मंदिर (Ram temple) के निर्माण को अपने एजेंडे में रखा. 1992 की रामरथ यात्रा, बाबरी ढांचे का ढहाया जान जैसे घटनाक्रम इसके साक्षी हैं.

    आखिर कई दशकों का धैर्य बीजेपी के काम आया और 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए (NDA) की सरकार बनी और कांग्रेस ने मुंह की खाई. 2019 के आम चुनाव में तो बीजेपी और भी प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई. कांग्रेस को तभी समझ में आ गया था कि धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा अब किसी काम का नहीं रह गया. राहुल गांधी ने मंदिरों में जाना शुरु किया. उनके पितामह फिरोज गांधी पारसी होने के बावजूद राहुल को जनेऊधारी ब्राम्हण घोषित करने का अजूबा पेश किया गया. जनता इस नौटंकी से प्रभावित नहीं हुई और 2019 के चुनाव में भी कांग्रेस का बेहाल हुआ. स्वयं राहुल गांधी अमेठी में चुनाव हार गए लेकिन केरल की वायनाड सीट से जीतने के कारण लोकसभा में पहुंच पाए. वैसे तो स्व्. इंदिरा गांधी भी रुद्राक्ष की माला पहनती थीं और मंदिरों में जाया करती थीं.

    उन्हें पुरी के जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) में प्रवेश देने से पंडों ने रोक दिया था लेकिन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का उन्हें व दिग्विजय सिंह को आशीर्वाद था. अब कांग्रेस को समझ में आ गया कि जब बीजेपी की नैया राम भरोसे पार हो गई तो वह भी क्यों पीछे रहे! अन्य राजनीतिक दलों की सोच भी कुछ ऐसी ही हो चली है. समाजवादी पार्टी ने भगवान राम की नगरी ओरछा (मध्यप्रदेश) में सम्मेलन लिया. इसके बाद कांग्रेस भी यहां मध्यप्रदेश के अपने विधायकों का 2 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर लगाने की तैयारी में है. इसमें पार्टी के नेता विधायकों को अपने क्षेत्र में पकड़ मजबूत बनाने व सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने व 2023 के चुनाव को लेकर मंत्र देंगे. बीजेपी की प्रतिक्रिया है कि सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस पार्टी ढोंग कर रही है लेकिन रामलला की कृपा कंग्रेस पर नहीं बरसेगी. कमलनाथ ने ओरछा में महोत्सव का आयोज्न किया था लेकिन सत्ता से उनका नमस्ते हो गया था.