पलायन की चुनौतियां प्रवासी मजदूर अपने साथ संक्रमण न लाएं!

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    प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) की समस्या जस की तस है. कोरोना की दूसरी लहर के साथ फिर मुंबई, (Mumbai)  दिल्ली, कोलकाता व सूरत में काम-धंधा ठप हो गया और गत वर्ष की भांति अब भी लाखों मजदूरों के पास अपने घर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा. पिछले वर्ष विभिन्न राज्यों ने एलान किया था कि वे अपने यहां औद्योगिक ढांचा तथा रोजगार के अवसर बनाएंगे ताकि उनके यहां के मजदूरों को मुंबई, दिल्ली जाने की नौबत न आने पाए. इन राज्यों ने कुछ भी किया-धरा नहीं.

    हालात सुधरने के बाद ये मजदूर फिर उन महानगरों की ओर लौट गए थे जहां उन्हें दाना-पानी मिलने की उम्मीद थी. अब लॉकडाउन जैसी स्थितियों में रोजगार (Job) ठप होने से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, यूपी व बिहार लौट रहे मजदूर वापस गांव पहुंच गए तो नए संक्रमण की बड़ी लहर उठने का खतरा है. केंद्र या राज्य सरकारों ने पिछले वर्ष के अनुभव से कुछ सीखा ही नहीं. लॉकडाउन व बंदिशों के बीच प्रवासी मजदूरों की वापसी के संकेत कुछ दिनों पहले मिलने शुरू हो गए थे लेकिन रेलवे और राज्य सरकारें जरा भी सजग नहीं हुई. प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित रेलयात्रा का इंतजाम नहीं किया गया. वापस लौटते समय उनकी कोरोना जांच के अलावा बाकी जानकारी जुटाई जा सकती थी.

    इससे मजदूरों का प्रबंधन कहीं ज्यादा आसान हो जाता और गांव में रहने वाले उनके परिजनों को संक्रमित होने से बचाया जा सकता था. अब भी सजगता बरतते हुए इन प्रवासी मजदूरों की जांच और गांव के बाहर सुरक्षित स्थान पर उन्हें ठहराने की व्यवस्था राज्यों को करनी होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गांव के भीतर जाने वाला हर प्रवासी मजदूर संक्रमण मुक्त है. ग्रामीण इलाकों में पहले ही स्वास्थ्य सुविधाएं काफी कमजोर हैं. इसमें थोड़ी भी चूक हुई तो गांव के गांव तेजी से संक्रमित हो जाएंगे, इसलिए बचाव ही एकमात्र उपाय है. राज्य सरकारों को युद्धस्तर पर तैयारी करनी होगी. पंचायतें भी स्वयंस्फूर्ति से सावधानी बरतें और वायरस फैलने से रोकने के उपाय करें.