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कोरोना संकट के जारी रहते और बार बार लाकडाउन बढ़ाए जाने से उद्योजकों में हताशा है। इसके अलावा श्रम कानूनों में ढील के बाद भी उद्योजकों का आशंका बनी रहेगी कि 3 वर्षों की रियायत के बाद क्या होगा? किसी उद्यम को तो जमने में भी इतना समय कम पड़ता है। ऊपर से स्थितियां भी प्रतिकूल चल रही हैं।

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ऐसा नहीं लगता कि आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के सरकार के प्रोत्साहन पैकेज का शीघ्र ही कोई अनुकूल असर पड़ेगा। उद्योजक स्थितियों और रियायतों का जयजा तभी लेगे जब लॉकडाउन हटेगा व हालात सामान्य होते नजर आएंगे। कोरोना संकट के जारी रहते और बार बार लाकडाउन बढ़ाए जाने से उद्योजकों में हताशा है। इसके अलावा श्रम कानूनों में ढील के बाद भी उद्योजकों का आशंका बनी रहेगी कि 3 वर्षों की रियायत के बाद क्या होगा? किसी उद्यम को तो जमने में भी इतना समय कम पड़ता है। ऊपर से स्थितियां भी प्रतिकूल चल रही हैं। पलायन करने वाले श्रमिक वापस काम पर लौटेंगे भी या नहीं। क्या स्थानीय मजदूर उतनी ही मेहनत से काम कर पाएंगे? ब्रोकरेज कंपनी गोल्डमैन साक्स ने आशंका जताई है कि लॉकडाउन के चलते विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी का देश भारत अब तक की सबसे भीषण मंदी के दौर से गुजरेगा। यह मंदी अमेरिका की 1930 की मंदी और गीस संकट की वजह से यूरोप में 2008 में आई मंदी को भी काफी पीछे छोड़ देगी। इसे सिर्फ अर्थव्यवस्था की सुस्ती मान लेना स्वयं को धोखे में रखना होगा। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ भी पहले के अनुमान 20 प्रतिशत की बजाय 45 प्रतिशत की गिरावट आएगी। फिर तीसरी तिमाही में 20 प्रतिशत की मजबूत रिकवरी होगी। चौथी तिमाही तथा अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए विकास दर का अनुमान क्रमश: 14 प्रतिशत और 6।5 प्रतिशत पर कायम रखा गया है। भारत में जीडीपी का 100 प्रतिशत अर्थात 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज घोषित किया गया है। इसमें ढांचागत सुधारो का समावेश है। इनका असर मीडियम टर्म में दिखेगा। 2021 के जीडीपी में 5 प्रतिशत की गिरावट आएगी। एक कंसल्टेंट कंपनी आर्थर डी लिटल की रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गई है कि कोरोना आपदा की वजह से भारत में 13।5 करोड़ लोगों की नौकरियां जा सकती हैं और 12 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं। इस महामारी का लोगों की आय और बचत पर बेहद बुरा असर पड़ रहा है। प्रति व्यक्ति आय में गिरावट से निचले पायदान के लोगों पर बुरा असर होगा। भारत में बेरोजगारी की दर वर्तमान 7।6 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। 4 करोड़ लोगों के तो अत्यंत गरीबी के शिकंजे में आने की आशंका है। आने वाला समय बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।