कोरोना का कहर, त्योहार तो हैं पर रौनक चली गई

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    पिछले वर्ष 9 मार्च को आखिरी त्योहार होली (Holi 2021) मना था. इसके बाद कोरोना संकट की वजह से उसी महीने लॉकडाउ (Corona Lockdown) लगाया गया और फिर वर्ष भर सारे त्योहार सिर्फ नाम मात्र के, फीके और बेरौनक होकर रह गए. ऐसी त्रासदी पहले कभी नहीं देखी गई थी. हमारे सारे त्योहार प्रेम-स्नेह व अपनत्व को बढ़ानेवाले रहे. हमारी उदात्त संस्कृति व सामाजिक भावना इनसे व्यक्त होती है. पहली बार ऐसा है कि होली बेरंग होकर रह गई. रंग-गुलाल पर मास्क का पहरा लग गया. 2 गज की दूरी गले मिलने की इजाजत नहीं देती. होली की उन्मुक्त मौजमस्ती, रंग-गुलाल से सराबोर करने और हुड़दंग पर कोरोना का ग्रहण लग गया.

    इसके पहले भी गत वर्ष रक्षाबंधन, विजयादशमी और दीपावली (Diwali) जैसे त्योहार कोरोना की भेंट चढ़ गए. जानलेवा वायरस ने ऐसा शक पैदा कर दिया कि कोई किसी के घर जाने में हिचकने लगा और कोई अपने घर आया तो लगने लगा कि यह आया ही क्यों? संबंध शक के घेरे में आ गए कि पता नहीं कौन कोरोना संक्रमित हो. सामाजिकता को ऐसा अभूतपूर्व आघात लगा कि आपसी संबंध सिर्फ फोन करने, एसएमएस और चैटिंग तक सीमित होकर रह गए. रक्षाबंधन पर भाई की कलाई सूनी रह गई. दीपावली पर घरों व बाजार में रौनक नदारद थी. कभी रात भर पटाखे चला करते थे अब बच्चों ने अनमने होकर केवल कुछ देर कम आवाज वाले पटाखे जलाए. इसी तरह जैनों का पर्युषण पर्व, ईसाइयों का क्रिसमस और मुस्लिमों की ईद की खुशियां भी कोरोना से प्रभावित हुए. सारे त्योहार सिर्फ कैलेंडर में अपनी उपस्थिति दर्शाने तक सीमित रह गए. धार्मिक के अलावा राष्ट्रीय पर्वों की चमक भी कोरोना ने छीन ली!