देश में नकली करंसी नोटों की तादाद में 3 गुना वृद्धि होना अत्यंत चिंताजनक है.
देश में नकली करंसी नोटों की तादाद में 3 गुना वृद्धि होना अत्यंत चिंताजनक है. इससे देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अत्यंत आश्चर्य की बात है कि नोटों की छपाई में कितने ही जटिल फीचर्स डाले जाते हैं ताकि कोई व्यक्ति जाली नोट न बना पाए. इतना होने पर भी जालसाज हूबहू वैसे ही नोट छाप लेते हैं जिनमें असली और नकली का भेद कर पाना कठिन हो जाता है. कोई पारखी ही इसे भांप सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी लागू की थी जिसके अनेक उद्देश्यों में जाली नोटों पर रोक लगाना, काले धन पर नियंत्रण व आतंकवाद पर रोक लगाना शामिल था.
तब आरोप लगा सकते थे कि भारत की अर्थव्यवस्था ध्वस्त करने के लिए पाकिस्तान जाली नोट छाप कर काठमांडू के रास्ते भारत में भेज रहा है तथा इन नोटों को खपाने के लिए भारी कमीशन भी दिया जाता है. हैरत की बात है कि पुराने 500 व 1,000 रुपए के नोटों का चलन बंद किए जाने के बाद सरकार ने जो नए करंसी नोट छापे उनकी भी नकल होने लगी. वाटर मार्क और सिल्वर थ्रेड से लेकर गूढ़ तरीके से विशेष कागज पर स्पेशल इंक द्वारा की गई छपाई भी काम नहीं आई. जाली नोटों के सौदागर हर चीज की पूरी तरह कॉपी कर लेते हैं. तू डल-डाल तो मैं पात-पात जैसी स्थिति है.
सरकारी एजेंसियों और रिजर्व बैंक के लिए चिंता का विषय है कि जाली नोटों की तादाद तब अचानक बढ़ी है जब यह दावा किया जा रहा है कि पहले से ज्यादा सुरक्षित नोट अब देश में छापे जा रहे हैं और उनके नकल कर पाना मुश्किल है. 2019 में 200 रुपए वाले पकड़े गए नकली नोटों की संख्या में 151 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी जबकि नई सीरीज के 500 रुपए वाले पकड़े गए जाली नोटों की संख्या 37 प्रतिशत बढ़ी है.
इसके बाद गत वर्ष कुल 8,34,947 लाख नकली नोट पकड़े गए जो वर्ष 2019 के मुकाबलें 280 फीसदी ज्यादा हैं. यह समस्या अत्यंत गंभीर है जिसका शीघ्र निराकरण होना चाहिए. जाली नोटों के रैकेट को पकड़ने में केंद्रीय एजेंसियों व पुलिस को तत्परता दिखानी होगी.