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    जब कोरोना संक्रमण देश में कहर ढा रहा था, लोग वैक्सीन, आक्सीजन और बेड़ के लिए त्राहि-त्राहि कर रहे थे तब प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का सारा ध्यान बंगाल विधानसभा चुनाव पर लगा था. गत 2 मई को चुनावी नतीजे आने तक वे मानो कोरोना की विभिषिका से जानबूझकर अनजान बने हुए थे और बंगाल को फतह करने के सपने देख रहे थे. कोरोना फैलता गया लेकिन प्रधानमंत्री बार-बार बंगाल जाकर चुनावी रैलियां करते रहे तथा ‘दीदी, ओ दीदी’ ललकार कर ममता बनर्जी को सीधी चुनौती देते रहे. समूचे देश का प्रधानमंत्री एक राज्य की मुख्यमंत्री को टक्कर देने में एड़ी-चोटी का जोर लगाता दिखाई दिया.

    अब अत्यंत विलंब से कोरोना की तबाही पर बोलने की पीएम को फुरसत मिली. उन्होंने कहा कि मैं देश का दर्द महसूस कर रहा हूं. क्या वे पीड़ा को अधिक से अधिक गहरी होने की प्रतीक्षा कर रहे थे? इस दौरान अस्पतालों में बेड नहीं थे, आक्सीजन नदारद थी, एम्बुलेंसवाले मरीजों के घरवालों को हजारों रुपयों से लूट रहे थे, दवाओं और इंजेक्शन की कालाबाजारी जोरों पर थी, शवों को गंगा में बहाया जा रहा था लेकिन दर्द महसूस करने का मुहूर्त बड़ी देर से आया. राजनीति को प्राथमिकता देते हुए मानवीय संवेदना को ताक पर रखा गया. अप्रैल माह में यही तो हुआ. देश में जगह-जगह लॉकड़ाउन जैसी स्थितियां थीं लेकिन चुनावी प्रदेशों में बड़ी-बड़ी रैलियां की जा रही थीं जहां न तो मास्क थी, न 2 गज की दूरी! क्या कोरोना पर काबू पाने की बजाय चुनाव कराना देश की प्राथमिकता था? चुनाव नहीं कराते तो इतना ही होता कि वहां राष्ट्रपति शासन लग जाता. बाद में कभी भी चुनाव कराए जा सकते थे.

    प्रधानमंत्री का सच से सामना तब हुआ जब उन्होंने कैबिनेट सचिव तथा वरिष्ठ अफसरों के साथ उच्चस्तरीय बैठक की. इस बैठक में उन्हें बताया गया कि कोरोना गांव-गांव तक पहुंच चुका है लेकिन गांव में जांच की सुविधा ही नहीं है. इसलिए अधिकतर कोरोना केसेस की रिपोर्ट नहीं हो रही है. पीएम केयर्स फंड से दिए गए वेंटिलेटर कुछ राज्यों में चल नहीं रहे हैं. राज्य सरकार उन्हें खराब बता रही है जबकि कुछ जगह उन्हें चलानेवाले टेक्निकल लोग ही नहीं हैं. यह सारा विवरण सुनकर प्रधानमंत्री सन्न रह गए और उन्होंने देश भर में टेस्टिंग बढ़ाने के आदेश दिए. साथ ही वेंटिलेटर्स का ऑडिट करना, बिजली सप्लाई अबाधित जारी रखने तथा आशा व आंगनवाड़ी कर्मियों के प्रशिक्षण के लिये कहा. काश, यह निर्देश पहले ही दे दिये जाते.