किसान आंदोलन से बढ़ीं पंजाब की दिक्कतें

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एक माह से भी ज्यादा समय बीत गया लेकिन केंद्र के नए कृषि कानूनों के विरोध को लेकर पंजाब में स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. सितंबर के अंत में यह आंदोलन शुरू हुआ और अब तक जारी है. इतने लंबे समय से ट्रेन संचालन बंद होने से मालगाड़ियां नहीं चल पा रही हैं और माल का अभाव होने से पंजाब के उद्योगों का बुरा हाल है. विद्युत सेक्टर भी प्रभावित हुआ है. विपरीत स्थितियों का असर पंजाब के अलावा जम्मू-कश्मीर, लद्दाख व हिमाचल प्रदेश पर भी पड़ा है. किसानों को अपना असंतोष व्यक्त करने का अधिकार है परंतु कानून-व्यवस्था संभालना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है. पजाब की कांग्रेस सरकार इस मामले में बुरी तरह विफल रही है.

30 किसान संगठन इस आंदोलन को चला रहे हैं लेकिन इससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है. केंद्रीय कानूनों के विरोध के अलावा बिजली खरीद समझौते का मुद्दा भी है जिस पर पंजाब की पिछली बादल सरकार के समय हस्ताक्षर हुए थे. धरने से 2 बिजलीघरों को कोयला सप्लाई नहीं हो पा रही है. रेलवे को करीब 1200 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. जहां तक आंदोलनकारी किसानों का सवाल है, वे मालगाड़ियों के आवागमन के लिए धरना हटाने को तैयार हैं. उन्होंने अक्टूबर के अंत में 2 दिनों के लिए ऐसा किया भी किंतु रेलवे ने खुद ही संचालन की दिक्कतों तथा सुरक्षा पहलुओं को ध्यान में रखते हुए मालगाड़ियों का यातायात बंद कर दिया. इसका सबसे बुरा असर आम जनता पर पड़ रहा है. घरों में बिजली की सप्लाई नहीं है और सिंचाई में भी दिक्कत जा रही है. इसका आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत विपरीत प्रभाव देखा जा रहा है.

अत: पंजाब की अमरिंदर सिंह सरकार को सोचना चाहिए कि राज्य का हित किसमें है. अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाली नीति किसी काम की नहीं है. धरना आंदोलन इतना लंबा चलाने में राज्य का ही हर प्रकार से नुकसान है. समूचे देश के गेहूं उत्पादन का 50 प्रतिशत हिस्सा पंजाब में होता है. धान की फसल को भी पानी की आवश्यकता है. बिजलीघर बंद रहने से सिंचाई हो पाना संभव नहीं है. मालगाड़ी नहीं चलने से न माल भेजा जा सकता है, न मंगाया जा सकता है. ट्रकों से परिवहन की भी अपनी सीमा है. यदि धरने का उद्देश्य केंद्र की नीतियों के प्रति कड़ा विरोध दर्शाना था तो वह इतने दिनों में काफी हद तक हो गया. केंद्र सरकार किसी के दबाव में आकर अपने कानून या नीतियों में बदलाव करने वाली नहीं है, फिर आंदोलन को लंबा खींचने से क्या लाभ? अमरिंदर सरकार, अकाली दल व कांग्रेस इस पहलू पर भी ध्यान दें तो उचित होगा.