प्रोत्साहन दें, अड़ंगे न लगाएं हमारे खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर दिखाएंगे

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    खेल महाकुंभ कहलाने वाले संसार के सबसे खर्चीले आयोजन ‘ओलम्पिक’ का समापन हो गया. निश्चित तौर पर टोक्यो ओलम्पिक जापान सरकार के लिए घाटे का सौदा रहा क्योंकि कोरोना संकट के दौर में खाली स्टेडियम में सारे मुकाबले हुए इसलिए टिकटों से होने वाली कमाई नहीं हुई. जहां तक भारत का सवाल है, हमारे खिलाड़ियों ने पहले से कुछ ज्यादा मेडल जीते. एक स्वर्ण, 2 रजत व 4 कांस्य पदकों के साथ भारत 48वें क्रमांक पर रहा. देशवासी हाकी मुकाबलों के अलावा मीराबाई चानू, रवि दहिया, बजरंग पुनिया, पीवी सिंधू, नीरज चोपड़ा व कमलप्रीत कौर का करतब देखने टीवी सेट से चिपके रहे.

    2016 के रियो ओलम्पिक में भारत ने 12 दिन प्रतीक्षा की थी, तब कहीं साक्षी मलिक ने मेडल जीता था लेकिन टोक्यो ओलम्पिक में पहले ही दिन मणिपुर की मीराबाई चानू ने वेट लिफ्टिंग में रजत पदक जीत लिया. समापन के एक दिन पहले नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीत कर ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारत की शान बढ़ाई. 41 वर्ष बाद भारत ने पुरुष हाकी में मेडल जीता. महिला टीम भी अच्छा खेली लेकिन पदक से वंचित रही. हम यह भी तो देखें कि खेल व खिलाड़ियों की राह देश में कितनी कठिन है. अभी तो नकद पुरस्कारों की घोषणा हो रही है लेकिन वास्तविकता में केंद्र से लेकर राज्यों तक मंत्री व खेल विभाग प्रोत्साहन देने की बजाय अड़ंगे लगाने में ही ज्यादा रुचि रखते हैं. यदि अन्य देशों के समान यहां भी प्रोत्साहन दिया जाता तो 130 करोड़ भारतीयों का देश मेडल जीतने वाले देशों की सूची में सबसे नीचे न होता. हमारे खिलाड़ी अत्यंत संघर्षपूर्ण स्थिति से आगे आए.

    अब खेलों को कारपोरेट स्पांसर की जरूरत है. सरकार भी खिलाड़ियों को बेहतर ट्रेनिंग सुविधाएं व अच्छा जॉब सुनिश्चित करे. सरकार खिलाड़ियों को चोट लगने पर समुचित मुआवजा दे तथा हेल्थ इंश्योरेंस भी करे. अभी भारत खेल पर प्रति व्यक्ति केवल 3 पैसा प्रतिदिन खर्च करता है तो चीन उससे 200 गुना अर्थात 6.20 रुपए खर्च करता है. अब भी समय है, हम बेहतर नतीजे हासिल कर सकते हैं. इसके लिए कार्यप्रणाली ठीक की जाए ताकि 2024 में होनेवाले पेरिस ओलम्पिक में हमारा स्थान ऊपर हो.