कितने दु:ख की बात है कि जिनकी श्रमशक्ति की बुनियाद पर देश खड़ा है, ऐसे प्रवासी मजदूर अपने गांव लौटते हुए दुर्घटनाओं में बड़ी तादाद में मौत के शिकार हो रहे हैं. यह आंकड़े कोरोना के मृतकों से 15 प्रतिशत ज्यादा हैं.
कितने दु:ख की बात है कि जिनकी श्रमशक्ति की बुनियाद पर देश खड़ा है, ऐसे प्रवासी मजदूर अपने गांव लौटते हुए दुर्घटनाओं में बड़ी तादाद में मौत के शिकार हो रहे हैं. यह आंकड़े कोरोना के मृतकों से 15 प्रतिशत ज्यादा हैं. विभिन्न राज्यों में लगभग 1,253 हादसे हुए हैं जिनमें 456 मजदूरों की मौत हुई. कोई रेल की पटरी पर ट्रेन से कुचलकर मरा तो किसी को पैदल चलते समय रास्ते में ट्रक ने कुचला. कोई जिस ट्रक पर सवार था, वह किसी अन्य वाहन से जा भिड़ा. लॉकडाउन में काम-धंधा बंद हो जाने से खाने-पीने और रहने का कोई सहारा नहीं रहने की वजह से ये प्रवासी मजदूर देश के अनेक ठिकानों से हजारों-लाखों की तादाद में अपने ‘मुलुक’ के लिए निकल पड़े. उन्होंने सैकड़ों मील की दूरी पर कड़ी धूप की भी चिंता नहीं की. कुछ ट्रकों में लद कर निकले तो कितने ही पैदल चल दिए. उनका हताश मन यही कह रहा था कि यहां भी मरना है और वहां भी मरना है तो फिर क्यों न अपनों के बीच में जाकर मरें. जिनके पास कुछ रकम थी, वह भी ट्रक वालों ने ले ली. पत्नी और नन्हें बच्चों के साथ मजदूरों का यह सफर अनेक राज्यों को पार करता हुआ बढ़ चला. इस काफिले ने विभाजन के समय की याद दिला दी जब हिंदू शरणार्थियों की भीड़ पाकिस्तान से भारत की ओर चल पड़ी थी. इन निराश्रित मजदूरों की दशा भी वैसी ही थी जिनकी जेब खाली और भविष्य अनिश्चित था. रास्ते में किसी ने कुछ खिला दिया तो ठीक, नहीं तो थकावट के बावजूद मजदूरों की संख्या देखते हुए भूखे पेट बेहद लंबा सफर करना उनकी नियति है. मजदूरों को बसों से भेजने के नाम पर राजनीति हो रही है. ट्रेनें पर्याप्त नहीं हैं. ट्रेन में सवार होने स्टेशन पहुंचते हैं तो लाठी खानी पड़ती है. पैदल या ट्रक पर सवार होकर सफर करना बेहद खतरनाक साबित हो रहा है. सबसे अधिक दुर्घटनाएं यूपी में हुई हैं. वहां लॉकडाउन के दौरान 144 मजदूरों की हादसों में मौत हुई. इसी तरह मध्यप्रदेश में 44, तेलंगाना में 37, महाराष्ट्र में 25, बिहार में 18, आंध्रप्रदेश में 15, झारखंड में 15, हिमालय प्रदेश व कर्नाटक में 13-13, केरल में 8 प्रवासी मजदूरों की दुर्घटनाओं में जान गंवानी पड़ी. केंद्र सरकार इसे गंभीरता से क्यों नहीं ले रही? मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी के लिए युद्धस्तर पर कदम उठाए जाने चाहिए.