एक नई जिम्मेदारी भारतीय अधिकारियों की तालिबान से चर्चा

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    अमेरिका इस वर्ष सितंबर तक अफगानिस्तान से अपनी फौज को वापस बुलाने जा रहा है. ऐसी हालत में दक्षिण एशिया की बड़ी ताकत होने के नाते वहां शांति-व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेदारी से भारत पीछे नहीं हट सकता. भारत अब तक वहां की सरकार को समर्थन देता आया परंतु स्थिति बदलती जा रही है. तालिबान लड़ाकों ने संघर्ष में तेजी लाई है और मई माह से अब तक 50 जिलों पर कब्जा कर लिया है. भारत को अफगानिस्तान में पाकिस्तान की दखलंदाजी बढ़ने से रोकना है. यदि अमेरिकी फौजों के हटने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया तो पाकिस्तान कश्मीर में आतंक पैदा करने के लिए तालिबानियों का इस्तेमाल करेगा.

    अभी भी तालिबान के सिराजुद्दीन हक्कानी के हक्कानी नेटवर्क के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से निकट संबंध हैं. तालिबान के नेतृत्व में सिराजुद्दीन हक्कानी दूसरे नंबर की हैसियत रखता है. भारत ने अफगानिस्तान में 3 अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर रखा है, जिसकी रक्षा करना आवश्यक है. गत वर्ष नवंबर में भारत ने 25 करोड़ डॉलर की लागत से अफगानिस्तान में शहतूत बांध का निर्माण करने के लिए समझौते को अंतिम रूप दिया था. इसके अलावा भारत ने 8 करोड़ रुपए की लागत से 100 से अधिक सामुदायिक विकास योजनाएं अफगानिस्तान में शुरू की हैं.

    भारत वहां 218 किलोमीटर लंबा डेलाराम-झारंज हाईवे भी बना रहा है. वहां मोदी सरकार ‘भारत-अफगान मैत्री बांध’ तथा अफगान संसद भवन भी बनवा रही है. अफगानिस्तान पर रूस और ईरान की भी निगाह लगी हुई है. भारत को अफगानिस्तान में अपने हितों की रक्षा करनी है इसलिए भारतीय अधिकारी तालिबान प्रतिनिधियों के संपर्क में हैं. परिस्थितियों में बदलाव के मद्देनजर  राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के दिशा-निर्देश में यह बातचीत आगे बढ़ रही है. यह सतर्कता रखी जा रही है कि पाकिस्तान कोई शरारत न करने पाए.