500 करोड़ खर्च होंगे BJP के मंत्री की बेटी की शादी शाही अंदाज में

क्या यही ‘सबका साथ सबका विकास’ है? बीजेपी पं. दीनदयाल उपाध्याय के सादगी के आदर्शों पर चलने की बात करती है लेकिन उसी का एक मंत्री अपनी बेटी की शादी में पानी की तरह पैसा बहाने जा रहा है.

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क्या यही ‘सबका साथ सबका विकास’ है? बीजेपी पं. दीनदयाल उपाध्याय के सादगी के आदर्शों पर चलने की बात करती है लेकिन उसी का एक मंत्री अपनी बेटी की शादी में पानी की तरह पैसा बहाने जा रहा है. कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार के स्वास्थ्य मंत्री बी. श्रीरामुलु अपनी बेटी रक्षिता की शादी शाही अंदाज में करने जा रहे हैं जिस पर 500 करोड़ रुपए से भी अधिक खर्च होने का अनुमान है. यह शादी बंगलुरू के पैलेस ग्राउंड में होने जा रही है जो 40 एकड़ का है. बालीवुड से आर्ट डायरेक्टर बुलाए गए हैं जो सेट बना रहे हैं. इस शादी में बड़ी दरियादिली से 1,00,000 लोगों को न्योता दिया गया. शीर्ष नेताओं और 500 पुजारियों को भी आमंत्रित किया गया है. आश्चर्य की बात है कि चुनाव में जनता के सामने सादगी का ड्रामा करने वाले नेता स्वयं अपने बेटे-बेटियों की शादी पर करोड़ों रुपए का अपव्यय करते हैं! यह भी सवाल उठता है कि उनके पास इतनी दौलत आती कहां से हैं? जिस देश में लगभग 25 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को विवश हैं वहां इस तरह शादी पर राजा-महाराजाओं के समान खर्च करते समय क्या मंत्री को तनिक भी शर्म नहीं आई? यह रकम जनकल्याण के लिए अथवा जरूरतमंदों की मदद के लिए खर्च की जा सकती थी. इतना तामझाम करने में कौन सा तुक है? कहना होगा कि यह रईसी का भोंडा प्रदर्शन है. इसे देखकर नहीं लगता कि सच में हमारे देश में ‘जनता का राज’ या लोकतंत्र है. यहां ‘लोक’ तरसने के लिए बाध्य हैं और धनकुबेर नेताओं का ‘तंत्र’ मौज कर रहा है. ऐसी अत्यंत खर्चीली शादियों को देख कोई भी कह सकता है कि देश अब भी सामंतवाद की मध्ययुगीन बेड़ियों से जकड़ा हुआ है. धन के नशे में इतराने वाले नेता दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि वे कितनी ऊंची हैसियत रखते हैं और आम जनता की औकात उनके मुकाबले दो कौड़ी की है. इस तरह की जहरीली सोच लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक है. विवाह तो सामान्य खर्च में एक दिन में संपन्न हो सकता है लेकिन मंत्री की बेटी की शादी का यह समारोह पूरे 9 दिन चलेगा. खास बात तो यह है कि मंत्री श्रीरामुलु दलित नेता हैं. कितना अच्छा होता यदि वे इस 500 करोड़ की रकम में से कम से कम 400 करोड़ दलित वर्ग के उत्थान के लिए खर्च करते. जब इतना धन खर्च कर ही रहे हैं तो उसी मंडप में गरीब कन्याओं का सामूहिक विवाह भी आयोजित कर अपना सामाजिक दायित्व निभा सकते हैं. ईश्वर ने उन्हें धन दिया है लेकिन शायद विवेक नहीं दिया.