विधान परिषद में मारपीट कर्नाटक में कांग्रेसियों का अशोभनीय कृत्य

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क्या कांग्रेस ने विधायी परंपराओं और अनुशासन को तिलांजलि दे दी है? कर्नाटक विधान परिषद (Karnataka Legislative Council) में कांग्रेसी सदस्यों (Congress leaders) ने जिस प्रकार का आचरण किया, वह सर्वथा निंदनीय है. विधान मंडल के उच्च सदन के सदस्य इस तरह आपा खो दें और गुंदागर्दी पर उतर आएं तो ऐसे कृत्य को अशोभनीय ही कहा जाएगा. ऐसी हरकतें पार्टी के मुंह पर कालिख पोतने वाली हैं. सदस्यों का काम सदन में सार्थक चर्चा करना तथा पुष्ट दलीलों के आधार पर बहस करना है, न कि मारपीट करना. फिर सड़क और विधान मंडल में फर्क ही क्या रह गया? कर्नाटक विधान परिषद में गोरक्षा कानून को लेकर जोरदार हंगामा हुआ. ‘कर्नाटक मवेशी वध और संरक्षण विधेयक’ गत 9 दिसंबर को विधानसभा में पारित हो चुका है.

इसके बाद इसे विधान परिषद में चर्चा के लिए लाया गया लेकिन कांग्रेस का रवैया यह था कि राज्य में गोहत्या पर रोक लगाने वाला कानून बनाना सही नहीं होगा. इसे लेकर कांग्रेसी विधायकों ने विधानसभा में हंगामा मचाया था परंतु विधान परिषद में तो उन्होंने सारी मर्यादाएं ताक पर रख दी. कांग्रेस के कुछ विधान परिषद सदस्य इस कानून के खिलाफ नारेबाजी करते हुए उसभापति भोजे गौड़ा के आसन तक जा पहुंचे. उन्होंने उपसभापति को खींचकर कुर्सी से नीचे उतार दिया और उनसे धक्का-मुक्की की. ऐसी स्थिति में अन्य विधान परिषद सदस्यों ने जैसे-तैसे उपसभापति को उपद्रवियों के चंगुल से बचाया. बाद में कांग्रेस के सभी एमएलसी को सदन से बाहर निकाल दिया गया.

कांग्रेसजनों की दलील है कि इस घटना के समय सदन की कार्यवाही नहीं चल रही थी. बीजेपी और जनता दल सेक्यूलर ने उपसभापति को गैरकानूनी ढंग से सभापति की कुर्सी पर बिठा दिया था. कांग्रेस ने उपसभापति को कुर्सी से उतरने को कहा. उनके नहीं उठने पर हमें उन्हें उठाना पड़ा. इस दौरान विधायक एक-दूसरे से मारपीट करने लगे. परिस्थितियां चाहे जैसी भी रही हों, विधायकों को विधान मंडल की गरिमा कायम रखनी चाहिए. विपक्ष के रूप में कांग्रेस पर जिम्मेदारी आती है कि उसके सदस्य संतुलित आचरण करें. विधान मंडल को दंगल का अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को भी चाहिए कि वे अपने विधायकों को इस तरह की हरकतें न करने व संयम बरतने की कड़ी हिदायत दें. इससे पार्टी की छवि खराब होती है.