मजदूरों को औकात बताई टिकट होने पर भी ट्रेन से नीचे उतारा

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कितने खेद की बात है कि आज भी कुछ लोग ऊंच-नीच और बड़े-छोटे वाली उपनिवेशवादी तुच्छ मानसिकता से ग्रस्त हैं. एक इंसान दूसरे इंसान का तिरस्कार कर उसका अधिकार छीने, यह सर्वथा असहनीय है. ऐसी सामंतशाही प्रवृत्ति स्वतंत्र भारत में कदापि बर्दाश्त नहीं की जा सकती. झारखंड के कोडरमा से ओड़िशा के भुवनेश्वर जा रहे 2 मजदूरों( Labourers Ramchandra Yadav) के साथ राजधानी एक्सप्रेस (Rajdhani Express) में टीटीई ने अत्यंत अभद्र व्यवहार किया.

इन मजदूरों के पास उस ट्रेन का कन्फर्म टिकट रहने के बावजूद टीटीई ने उन्हें ट्रेन से उतार दिया और कहा कि तुम्हारी औकात राजधानी में सफर करने की नहीं है. इस अपमानजनक बर्ताव के बाद पीड़ितों ने मामले की शिकायत कोडरमा के स्टेशन मास्टर के पास दर्ज कराई जिसे धनबाद रेल मंडल के वरिष्ठ अधिकारियों के पास भेज दिया गया. यह घटना याद दिलाती है कि दक्षिण अफ्रीका में ऐसा ही दुर्व्यवहार महात्मा गांधी के साथ हुआ था. तब वे लंदन से बैरिस्टरी की परीक्षा पास कर द. अफ्रीका आए थे. उनके पास ट्रेन का प्रथम श्रेणी का टिकट था लेकिन ट्रेन के कम्पार्टमेंट में चढ़े रंगभेदी गोरों ने उन्हें अपने साथ सफर नहीं करने दिया बल्कि अपमानित कर उन्हें मेरित्जबर्ग स्टेशन पर ट्रेन से नीचे प्लेटफार्म पर ढकेल दिया था. इसके बाद बापू ने रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लिया और उन्हीं की विचारधारा को नेल्सन मंडेला ने आगे बढ़ा कर वर्णभेदी शासन को द. अफ्रीका से उखाड़ फेंका.

अन्याय के खिलाफ अहिंसक संघर्ष के लिए इसी घटना ने बापू को प्रेरित किया था. भारत में छुआछूत और वर्णभेद तो कानूनी रूप से काफी पहले समाप्त हो गए लेकिन धनवान और गरीब के बीच भेदभाव रखने की निंदनीय मानसिकता अब भी बरकरार है. मजदूरों के पास कंफर्म टिकट रहने पर भी यह कहना कि राजधानी में सफर करने की तुम्हारी औकात नहीं है, ऐसी ही घृणित सोच को दर्शाता है. यह सोच ही गलत है कि कोई मजदूर किसी लग्जरी ट्रेन या फाइवस्टार होटल में नहीं जा सकता. वह भी इंसान है और यदि वह इसका शुल्क दे रहा है, तो उसे रोकने-टोकने का किसी को भी अधिकार नहीं है.