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    जदयू और बीजेपी को इस बात से चिंता हो सकती है कि चारा घोटाले में सजा काट रहे राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालूप्रसाद यादव को झारखंड हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है और वे सवा 3 साल बाद जेल से छूट जाएंगे. लालू के बाहर आने से बिहार की राजनीति काफी हद तक प्रभावित हो सकती है. तेजस्वी या तेजप्रताप की तुलना में लालू जैसे अनुभवी व चतुर नेता का असर कहीं ज्यादा पड़ता है. राजद सुप्रीमो के जेल में रहने से जदयू व बीजेपी निश्चिंत हो गए थे लेकिन उनकी बाहर मौजूदगी से अब मुख्यमंत्री नीतीशकुमार व बीजेपी नेताओं को काफी सतर्क रहना पड़ेगा. 

    यद्यपि लालू यादव को चारा घोटाले के आपराधिक मामले में 7 वर्ष की सजा सुनाए जाने से उनके चुनाव लड़ने पर आजीवन बैन लग गया था लेकिन वे राजनीति में उथल-पुथल मचाने के साथ ही किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं. कानून के लिहाज से भ्रष्टाचार एक गंभीर मुद्दा है लेकिन कितने ही भ्रष्ट नेता जनता में काफी लोकप्रियता व प्रभाव रखते हैं. लालू अपने लटके-झटके व बयानबाजी के कारण प्रभावी साबित होते रहे हैं. 

    उनके अनुयायियों को उनके भ्रष्ट होने या जेल जाने से फर्क नहीं पड़ता. जेल में भी तो लालू से मिलने कितने ही नेता जाया करते थे. लालू का असर तब भी देखा गया था जब चारा घोटाले की वजह से पद से हटने के बाद उन्होंने अपनी अनपढ़ पत्नी राबडी देवी को मुख्यमंत्री बनवा दिया था. जब लालू और नीतीश कुमार के बीच अच्छे संबंध थे तब लालू ने ही बिहार का सीएम पद अपने पास रखते हुए नीतीश को केंद्रीय राजनीति में भेजा था. 

    नीतीशकुमार बिहार में ‘सुशासन बाबू’ की छवि जरूर रखते हैं लेकिन जदयू को कम सीटें मिलने की वजह से उन्हें बीजेपी का सहयोग लेकर सरकार बनानी पड़ी. लालू का बाहर आना बिहार में बीजेपी और जदयू के लिए खतरे की घंटी है.