10वीं-12वीं की परीक्षाएं राज्य में निर्णय लेने में देरी क्यों की

    Loading

    जिन 10वीं-12वीं की बोर्ड (10th-12th Board Exam) परीक्षाओं से राज्य के लाखों विद्यार्थियों का भविष्य जुड़ा है उन्हें अनिश्चितता के भंवर में क्यों डाला गया? कोरोना से उत्पन्न भयावह स्थितियों को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) को इस मामले में पहले ही फैसला करना चाहिए था. उसने परीक्षा की तारीख आगे बढ़ाने का निर्णय लेने में देरी क्यों की? छात्रों और पालकों में पहले ही भ्रम, संशय व उहापोह की मानसिकता देखी जा रही है. पिछले वर्ष के मार्च माह के बाद से समूचे शैक्षणिक वर्ष में क्लासरूम में पढ़ाई हुई ही नहीं. स्कूल, कालेज, कोचिंग क्लास सभी का यह हाल है कि फीस तो पूरी ले रहे हैं लेकिन ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है.

    बच्चे मोबाइल और लैपटॉप से पढ़ाई कर रहे हैं जिसमें कभी नेटवर्क न मिलने से या सिग्नल वीक होने से पढ़ाई में बाधा आती है. खासकर ग्रामीण इलाके में छात्रों को यह समस्या झेलनी पड़ती है. वैसे भी ऑनलाइन शिक्षा वास्तविक शिक्षा का सार्थक विकल्प नहीं बन सकती. ऐसे माहौल में सहपाठियों व शिक्षा संस्थान से दूर रहकर पढ़ने वालों का कितना बौद्धिक व मानसिक विकास हुआ, यह सिर्फ अनुमान का ही विषय है. पाठ्यक्रम में कटौती के बाद भी वह कितना पूरा हो पाया? पालक जब बच्चों को स्कूल-कॉलेज ही नहीं भेज पाए तो कोरोना की उग्रता देखते हुए परीक्षा के लिए किस भरोसे भेज पाएंगे? क्या वहां छात्र एक-दूसरे से नहीं मिलेंगे? कौन-सी 2 गज की दूरी रह पाएगी? जिस आधार पर छोटी कक्षाओं में बिना परीक्षा लिए जनरल प्रमोशन दे दिया गया, वैसा 10वीं और 12वीं के लिए तो नहीं हो सकता.

    शिक्षा की गुणवत्ता परखनी ही होगी लेकिन परीक्षाओं को लेकर दुविधा व अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. स्टेट बोर्ड की 12वीं की परीक्षा मई के अंत में तथा 10वीं की परीक्षा जून में आयोजित करने की बात शालेय शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड़ ने कही है. उन्होंने यह भी कहा कि सीबीएसई, आईसीएसई, आईबी, कैम्ब्रिज बोर्ड को पत्र लिखकर उनकी अखिल भारतीय परीक्षाओं की तारीखों पर पुनर्विचार करने को कहा जाएगा.