घरेलू मांग बढ़ाने की आवश्यकता

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वित्त वर्ष 2020-21 की द्वितीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) (Gross domestic product) (GDP)7.5 प्रतिशत गिरावट के साथ 33.14 लाख करोड़ पर आ गया जो मंदी को दर्शाता है. इतने पर भी यह गिरावट भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve bank of India) के अनुमान से कम है. आरबीआई ने गत माह अपनी मौद्रिक नीति में 9.8 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान जताया था. निजी क्षेत्र में उपभोग या खपत एक उल्लेखनीय आर्थिक संकेत है जो कि द्वितीय तिमाही में 11.3 प्रतिशत घटकर 17.96 लाख करोड़ रुपए रह गई.

उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति कोरोना संकट के दौरान आई आर्थिक सुस्ती की वजह से घटी है. देखा जाए तो कृषि ने ही भारतीय अर्थव्यवस्था को ऐसे नाजुक समय पर संभाल रखा है. इसलिए जरूरी है कि कृषि क्षेत्र को किसी भी नुकसान से बचाया जाए. सरकार किसानों की बेचैनी और चिंता दूर करे. मार्च माह के अंत में लॉकडाउन लागू करने के बाद सरकार ने श्रम कानूनों को शिथिल किया ताकि उद्योगों को सहारा मिल सके और निवेश आकर्षित किया जा सके. ये सुधार उन दिक्कतों को दूर करने के लिए थे जो अर्थव्यवस्था की वित्त आपूर्ति को रोकती थीं.

इसके बाद भी एक बड़ी समस्या यह है कि घरेलू मांग नहीं बढ़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसीलिए आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना में घरेलू मांग को एक स्तंभ के रूप में शामिल किया है. अभी सरकार की प्राथमिकता कमजोर घरेलू मांग की ओर ध्यान देना है. यदि सरकार वित्त वर्ष के बचे हुए 4 महीनों में अपना कर्ज लेने का सिलसिला आगे नहीं बढ़ाना चाहती तो उसे जनता की क्रयशक्ति बढ़ानी होगी जो कि वेतन कटौती या बेरोजगारी जैसे कारणों से ठिठक गई है. आधारभूत ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में गति लाकर ऐसा किया जा सकता है. आर्थिक चुनौतियों से हर हालत में निपटना होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्तमान वित्त वर्ष की प्रथम तिमाही में 23.9 प्रतिशत की अभूतपूर्व गिरावट आई थी लेकिन इसके बाद द्वितीय तिमाही में यह गिरावट सिकुड़कर 7.5 फीसदी रह जाना एक अच्छा लक्षण है. मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में द्वितीय तिमाही में 0.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. लॉकडाउन हटने के बाद व्यापार, होटल, परिवहन और संचार क्षेत्रों में सुधार देखा जा रहा है लेकिन वित्तीय, रियल इस्टेट तथा पेशेवर सेवाओं की हालत नहीं सुधर पा रही है. अक्टूबर में जो संकेत मिले हैं, उससे अर्थव्यवस्था को लेकर उम्मीदें बढ़ी हैं.