वित्तमंत्री ने क्यों कहा SBI को निर्मम बैंक

बैंक अपने नियमों के मुताबिक चलते हैं. वे दयालुता दिखाएंगे तो चल ही नहीं पाएंगे. बैंक अमीरों के प्रति भले ही उदार हों लेकिन कर्ज अदा करने में असमर्थ गरीबों से उनकी कोई सहानुभूति नहीं होती. वित्त

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बैंक अपने नियमों के मुताबिक चलते हैं. वे दयालुता दिखाएंगे तो चल ही नहीं पाएंगे. बैंक अमीरों के प्रति भले ही उदार हों लेकिन कर्ज अदा करने में असमर्थ गरीबों से उनकी कोई सहानुभूति नहीं होती. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बैंकों की इस तरह की प्रवृत्ति से नाराज हैं. वे बैंक अधिकारियों को सामाजिक सरोकार सिखाने की मंशा रखती हैं. वित्त मंत्री की एक आडियो क्लिप सामने आई है जिसमें उन्होंने स्टेट बैंक आफ इंडिया (एसबीआई) प्रमुख रजनीश कुमार को फटकारा. असम के चाय बागान के मजदूरों के 2.5 लाख खाते एसबीआई में निष्क्रिय पड़े हैं. इन लोगों के कर्ज की अवधि भी नहीं बढ़ाई जा रही है. वित्त मंत्री ने एसबीआई चेयरमैन की खिंचाई करते हुए कहा कि आप एक बेरहम बैंक हैं. आप कितने समय में ये सारे खाते पुन: कार्यरत करेंगे? आगे की क्या योजना है? मुझे गुमराह मत कीजिए. आपसे भारी भूल हुई है. इस मामले में आप मुझसे दिल्ली आकर मिलें. मैं यह विषय छोड़ने वाली नहीं. यह पूरी तरह कामचोरी है. मैं इसके लिए आपको जवाबदार मानती हूं. चाय बागान में काम करने वालों के खाते शुरू किए जाएं. आपकी अकड़ से उन गरीबों का नुकसान नहीं होना चाहिए. गुवाहाटी में गत 27 फरवरी को स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी और वित्त सेवा विभाग की ओर से कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें वित्त मंत्री बोल रही थीं. वहीं उन्होंने एसबीआई चेयरमैन की जमकर खबर ली. निर्मला सीतारमण के इस वक्तव्य का आल इंडिया बैंक आफिसर्स कान्फेडरेशन ने निषेध किया है. बैंकों के अपने नियम होते हैं. यदि कोई खाता न्यूनतम बैलेंस नहीं रखता या उसे परिचालित नहीं किया जाता तो उसे निष्क्रिय खाते (डारमेंट अकाउंट) में तब्दील कर दिया जाता है. नियमों पर चलने वाले बैंक गरीबों के मामले में सख्त हो जाते हैं परंतु धनी व हैसियतदार लोगों को लोन या ओवरड्राफ्ट की सुविधा देते समय काफी दरियादिली दिखाते हैं. तथाकथित बड़े लोग करोड़ों का ऋण डुबो देते हैं लेकिन बैंक उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता. वह गरीबों को ही अपने नियमों के शिकंजे में कसता है. इसीलिए वित्त मंत्री ने एसबीआई को हार्टलेस (निर्मम) बैंक कहा. प्रधानमंत्री या सरकार की गरीबों को आर्थिक सहायता देने वाली योजनाएं बैंकों के ऐसे रवैये की वजह से अटकी पड़ी रह जाती हैं.