Problems in the path of self-reliance

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा कि अगर हमारे गांव, कस्बे, जिले व राज्य आत्मनिर्भर होते तो हमारे सामने मौजूद अनेक समस्याओं ने वह रूप धारण नहीं किया होता जिस रूप में वे आज हमारे सामने खड़ी हैं।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा कि अगर हमारे गांव, कस्बे, जिले व राज्य आत्मनिर्भर होते तो हमारे सामने मौजूद अनेक समस्याओं ने वह रूप धारण नहीं किया होता जिस रूप में वे आज हमारे सामने खड़ी हैं। पीएम का सीधा संकेत प्रवासी मजदूरों के संदर्भ में है जिनके अपने प्रदेशों में बेरोजगारी व्याप्त होने से वे रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में जाने को बाध्य हुए। यदि यूपी, मध्यप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में औद्योगिक ढांचा मजबूत रहता तो वहां के श्रमिक अन्य प्रदेशों में क्यों जाते? महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात के उद्योगों और वहां मिलने वाले कमाई के अवसरों ने प्रवासी श्रमिकों को अपने यहां आकर्षित किया। यूपी में टेक्सटाइल व चीनी कारखाने बंद होते चले गए। खेती का सीजन भी मुश्किल से 3 महीने चलता है। इसके बाद श्रमिक क्या करें? इसके अलावा कई पीढ़ियों से चली आ रही खेती भी बढ़ते हुए परिवार के सदस्यों के बीच विभाजित होती रहती है। जमीन की जोत इतनी छोटी रह जाती है कि उसके भरोसे गुजर-बसर नहीं हो सकती इसलिए वहां के युवा मुंबई-पुणे, नाशिक, दिल्ली, सूरत आदि शहरों की ओर जाते हैं और मेहनत से पैसा कमाकर अपने घर भेजते हैं। पंजाब, हरियाणा व कश्मीर में भी बिहार के मजदूर जाकर काम करते हैं। आत्मनिर्भरता की गांधीवादी विचारधारा यही थी कि गांव का बढ़ई, लोहार, मकान बनाने वाला मिस्त्री, दर्जी, मजदूर आदि अपने गांव में रहकर वहीं परिश्रम कर गुजरबसर करें। यह 7 दशक से भी पहले की सोच थी, जब देश का औद्योगिकरण नहीं हुआ था और लोगों की जरूरतें अत्यंत सीमित थीं। तब देश की आबादी भी 40 करोड़ के आसपास थी। लोगों की पीढ़ियां एक ही गांव में जिंदगी बिता लेती थीं। अब वैसा कहीं नहीं है। युवा पैसे कमाने की ललक लेकर अपने गांव से बाहर चला जाता है और संघर्ष करता है। गांव में प्राय: बूढ़े, बच्चे व महिलाएं ही रह जाते हैं। अब यदि पिछड़े हुए प्रदेशों में आत्मनिर्भरता बढ़ाना है तो कृषि आधारित उद्योग, पशुपालन, कुक्कुट पालन, मस्त्यपालन, शहद उत्पादन आदि को बढ़ावा देना होगा। फसल का अच्छा समर्थन मूल्य देकर किसानों की लाचारी दूर की जा सकती है। स्वामिनाथन समिति की सिफारिशें पूरी तरह लागू की जाएं तो किसानों का भाग्य संवर सकता है। यूपी-बिहार में उद्योगों की स्थापना क्यों नहीं हो पा रही और निवेशक वहां इंडस्ट्री लगाने के लिए आगे क्यों नहीं आते, यह भी प्रधानमंत्री को अवश्य पता होगा। उद्योगों के लिए अनुकूल और पोषक वातावरण बनाने, लालफीताशाही की जकड़न दूर करने और वसूली करने वाले माफिया गिरोह पर काबू पाने की जरूरत है। तब तक आत्मनिर्भरता स्वप्न ही रहेगी।