Rahul gandhi

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कांग्रेस (Congress) अब अनिश्चितता के भंवर से बाहर निकलेगी. 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में विफलता के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. वास्तव में वे चाहते थे कि अन्य नेतागण भी इस्तीफा दें तो पार्टी का नए सिरे से पुनर्गठन किया जाए लेकिन राहुल को छोड़कर अन्य किसी भी नेता ने इस्तीफा नहीं दिया. तबसे अपनी अस्वस्थता के बावजूद सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष का पद संभाल रही हैं और साथ में यूपीए चेयरपर्सन भी बनी हुई हैं. बार-बार मनाने पर भी राहुल पुन: अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं थे.

ऐसे में पार्टी दिशाहीन हो चली थी. इस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी (BJP) की राह पकड़ ली. सचिन पायलट ने पहले बगावती तेवर दिखाए फिर मान गए लेकिन अब भी उनकी राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत से नहीं पटती. विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर मोदी सरकार को कड़ी चुनौती दे पाने में कांग्रेस नाकाम रही है. इसके अलावा कांग्रेस के 23 नेताओं ने भी सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को पत्र लिखकर पार्टी की दशा पर चिंता व्यक्त की थी. इस लेटर बम के मीडिया में जाने पर नाराजगी जताई गई थी और कहा गया था कि ये नेता सोनिया से प्रत्यक्ष मिलकर भी अपनी मांगों व शिकायतों को रख सकते थे. कांग्रेस की हालत यह है कि लोकसभा में कुल सदस्यों के एक-दहाई सदस्य नहीं होने की वजह से उसे अधिकृत विपक्ष का दर्जा नहीं मिल पाया. विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी सिंधिया को न संभाल पाने के कारण कांग्रेस को मध्यप्रदेश में अपनी सरकार गंवानी पड़ी. पार्टी का पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं होने के दुष्परिणाम सामने आ रहे थे. ऐसी स्थिति में सोनिया गांधी के आवास पर हुई कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में राहुल के अध्यक्ष बनने की बात उठी.

कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस का नेतृत्व करना चाहिए. इसके पहले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने भी यह मांग उठाई थी. आखिर राहुल ने कहा कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी, उसे निभाने के लिए वे तैयार हैं. इस तरह राहुल पुन: कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए राजी हो गए. कांग्रेस की हकीकत यह है कि उसके पास गांधी परिवार को छोड़कर कोई विकल्प भी नहीं है. भले ही पार्टी कमजोर हालत में हो लेकिन यह परिवार ही उसे जोड़े रखता है. जब राहुल अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेने को राजी हैं तो उसके लिए पूरा समय व ऊर्जा दें. पार्टी में पुराने नताओं के अनुभव और नए नेताओं के जोश का उचित समायोजन ही उसे आगे ले जाएगा.