Sachin Pilot, Ashok Gehlot
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    राजनीति में फोन टेपिंग कोई नई बात नहीं है. जब इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) प्रधानमंत्री थीं तब भी उनके मंत्री आशंकित रहते थे कि कहीं उनका फोन टेप तो नहीं किया जा रहा. इमरजेंसी लागू होने के बाद तो कितने ही मंत्रियों व वरिष्ठ नेताओं के दिल में इस तरह की शंका बैठ गई थी. विभिन्न राज्यों में भी अपनी पार्टी के या विपक्षी नेताओं के फोन टेप किए जाने के मामले समय-समय पर उठते देखे गए हैं. जब पार्टी में फूट या बगावत की आशंका हो तो फोन पर होने वाली बातचीत रिकार्ड कर ली जाती है.

    आपसी अविश्वास पनपने की वजह से इस तरह की नौबत आती है. कांग्रेस में पुराने और युवा नेताओं के बीच स्पर्धा और टकराव चल रहा है. राजस्थान में सचिन पायलट (Sachin Pilot) को आगे रखकर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की लेकिन जब सरकार बनाने का समय आया तो पायलट की बजाय अनुभवी नेता अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया. उधर उपचुनाव में गहलोत के बेटे की हार के पीछे पायलट का हाथ होने का आरोप लगाया जाता रहा. गहलोत (Ashok Gehlot) और सचिन पायलट की आपस में बनती नहीं. बीजेपी (BJP) इस असंतोष का लाभ उठाकर पायलट को अपने खेमे में लाना चाहती थी लेकिन उसके आपरेशन लोत्स को सफलता नहीं मिल पाई. सचिन पायलट को भी प्रियंका गांधी ने मना लिया और संकट टल गया. आखिर 8 महीने बाद गहलोत सरकार ने कबूल किया कि गत वर्ष जुलाई में सचिन पायलट खेमे की बगावत के समय मोदी सरकार के एक केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस विधायकों के फोन टेप किए गए थे.

    तब मुख्यमंत्री गहलोत ने आरोप लगाया था कि बीजेपी कांग्रेसी विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रही है. यह मुद्दा उठने के बाद अगस्त 2020 में विधानसभा सत्र में पूर्व शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ (Kali Charan Saraf) ने सवाल पूछा था कि क्या यह सच है कि फोन टेपिंग की गई? यदि हां तो किस कानून के तहत और किसके आदेश पर यह कार्रवाई की गई? भाजपा व बसपा ने भी गहलोत सरकार पर अवैध फोन टेपिंग का आरोप लगाया था. इसके जवाब में सरकार ने पुष्टि की कि सक्षम स्तर पर मंजूरी लेकर भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम में दिए गए कानूनी प्रावधानों के तहत फोन टेप किए गए थे.