देश में ही समस्याएं कम नहीं, नेपाल में हस्तक्षेप के पचड़े में ना पड़े

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नेपाल (Nepal) संकट के दौर से गुजर रहा है. ऐसे समय नेपाल संसदीय दल के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड (Pushpa Kamal Dahal Prachanda) ने कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन रोकने के लिए भारत से मदद मांगी है. प्रश्न उठता है कि भारत क्यों नेपाल के सत्ता संघर्ष में बिचौलिया बने? जब श्रीलंका में लिट्टे और सरकार के बीच हिंसक संघर्ष जारी था तब वहां के राष्ट्रपति प्रेमदासा के अनुरोध पर  भारत ने शांति सेना भेजी थी लेकिन इसका नतीजा अच्छा नहीं रहा.

जब राजीव गांधी श्रीलंका दौरे पर गए तो गार्ड ऑफ ऑनर के समय विजय मुनिरत्ने नामक सैनिक ने अचानक रायफल के बट से उन पर वार किया लेकिन फुर्ती से राजीव ने खुद को बचा लिया था, परंतु इसके बाद लिट्टे ने श्रीपेरम्बुदूर में मानवबम से उनकी हत्या कर दी थी. इसलिए किसी के अंतरिक मामलों में दखल देने से दूर ही रहना उचित है. क्या भारत के सामने अपनी घरेलू समस्याएं कम हैं? नेपाल में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद भंग कर दी. ओली और प्रचंड दोनों कम्युनिस्ट नेता हैं जिनके बीच वर्चस्व की होड़ चली आ रही है. ओली के पीएम रहते ही भारत के कालापानी, लिम्पियाधुरा, लिपुलेख जैसे इलाकों को नेपाल ने अपने नक्शे में बताने की जुर्रत की. चीन की नेपाल में काफी दखलंदाजी है. चीन का बड़ा प्रतिनिधि मंडल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में चल रहे घमासान में हस्तक्षेप करने पहुंचा है.

पार्टी का विभाजन रोकने के लिए चीन प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार है. प्रचंड का भारत से मदद मांगना भी चीन की कुटिल योजना का हिस्सा हो सकता है. यदि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी टूटकर वहां होने वाले संसद के चुनाव में भारत समर्थक नेपाल कांग्रेस जीत कर आती है तो यह हमारे देश के लिए अनुकूल रहेगा. भारत ने पड़ोसी देश नेपाल को अस्थिरता से बचाने के लिए पहले ही रॉ के प्रमुख सामंत गोयल (Samant Kumar Goel) और सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे (M M Naravane) को भेजा था. उद्देश्य यही था कि नेपाल चीन के बहकावे में न आए. भारत ने लंका को भी ऐसा ही परामर्श दिया था जो खुद ही चीन के चंगुल से निकल गया. इससे ज्यादा आगे बढ़कर वहां की राजनीति में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करना हितकर नहीं होगा.