देश के अन्य प्रदेशों के समान जम्मू-कश्मीर को पुन: राज्य का दर्जा?

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    जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के दौरान आतंकवाद पर काफी हद तक काबू पाया जा चुका है और अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान से मिलने वाली आर्थिक मदद के रास्ते भी बंद कर दिए गए हैं. वहां बंद, हड़ताल और पत्थरबाजी करवाने वालों को सबक सिखाया जा चुका है. इस दौरान जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषदों के चुनाव शांतिपूर्वक हुए. एलओसी पर संघर्षविराम लागू है जो कि बैक चैनल वार्ताओं से संभव हो सका है. लंबे समय तक नजरबंद रहे कश्मीरी नेता भी समझ चुके हैं कि केंद्र से टकराव जारी रखने में कोई फायदा नहीं है.

    इन स्थितियों में जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा देने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंशा रखते हैं. इस उद्देश्य से उन्होंने जम्मू-कश्मीर के सभी 24 राजनीतिक दलों के नेताओं से 24 जून को सर्वदलीय बैठक लेना तय किया है. इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों फारुक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद व जीए मीर के अलावा पीपुल्स कांफ्रेंस के मुजफ्फर हुसैन बेग, सीपीएम के एमवाई तारीगामी व जेके अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी को आमंत्रित किया गया है. प्रधानमंत्री के साथ बैठक से पहले पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीए) के घटक दल अपनी अलाग बैठक कर सकते हैं. प्रधानमंत्री से बातचीत में 2 मुद्दे रह सकते हैं.

    पहला, केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देना और दूसरा, वहां चुनाव कराना. चुनाव के लिहाज से विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन भी विचार का मुद्दा हो सकता है. केंद्र सरकार ने राजनीतिक पहल का संकेत देते हुए पीडीपी नेता सरताज मदनी को 6 माह की हिरासत के बाद रिहा कर दिया. कश्मीर को मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से 5 अगस्त 2019 को संविधान का अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया गया था जो इसे विशेष राज्य का दर्जा देता था. इसके लगभग 2 वर्ष बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिरोध खत्म करने की पहल की जा रही है.