आखिर बीजेपी (BJP government हाईकमान ने भ्रष्टाचार मनमानी और प्रशासनिक अकुशलता के आरोपों से घिरे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रसिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) का इस्तीफा ले लिया. राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपनी निष्कलंक और कर्मठ छवि लेकर जाना चाहती है. इसलिए अपने दामन पर लगे दाग छुपाने और धोने में लगी है इसके पहले भी चाल चरित्र और चेहरा के नाम पर अपने हाथों अपनी पीठ ठोंकने वाली इस पार्टी ने कितने ही अकर्मण्य व भ्रष्ट तत्वों कोऊंचे पदों से नवाजा था.
सभी को याद है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए बंगारू लक्ष्मण को नोटों का बंडल स्वीकारते हुए कैमरे में कैद किया गया था. इससे पार्टी की काफी बदनामी हुई थी और बंगारू को इस्तीफा देना पड़ा था. कर्नाटक के सीएम येदियुरप्पा पर भी बेल्लारी खानन घोटाले के आरोपी रेड्डी बंधुओं से मिलीभगत के गंभीर आरोप लगे थे. इतने पर भी राजनीतिक मजबूरी के तहत 76 वर्ष की उम्र पार कर चुके येदियुरप्पा को कर्नाटक सीएम पद पर कायम रखा जा रहा है. पार्ट को उनका कोई विकल्प ही नहीं मिल रहा है.
जहां तक जितेंद्रसिंह रावत का मामला है, अपर आरोप था कि 2016 में जब वे बीजेपी के झारखंड प्रभारी थे तब उन्होंने एक व्यक्ति को गोसेवा आयोग का अध्यक्ष बनाने के लिए रिश्वत ली थी तथा रिश्वत की रकम अपने रिश्तेदारों के बैंक खातों में ट्रांसफर कराई थी. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस मामले में सीबीआई से एफआईआर दर्ज कर जांच करने का आदेश दिया था. जस्टिस रवींद्र पैठाणी ने फैस्ले में लिखा था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रसिंह रावत के खिलाफ गंभीर आरोप है. इस फैस्ले के खिलाफ रावत ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. रावत की अक्षमता भी चर्चित रही है. उनके बारे में कहा गया कि वे चुनिंदा नौकरशाहों के भरोसे सरकार चलाते हैं तथा उन्हें हटाने की मांग लगातार जोर पकड़ रही थी. अब देख्:ना होगा कि रावत के स्थान पर किसे अगला सीएम बनाया जाता है.