Market inflation rate

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आर्थिक मोर्चे पर सरकार की विफलता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि चिल्लर के बाद थोक महंगाई भी बढ़ गई. कोरोना संकट (Coronavirus)की वजह से कितने ही लोग बेरोजगार हो गए या उनका वेतन कम कर दिया गया. गरीब जैसा था, वैसा ही है लेकिन सफेदपोश मध्यम वर्ग के अत्यंत बुरे हाल हो गए. आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया से भी बदतर स्थिति हो गई. बुनियादी जरूरत की चीजें लगातार महंगी होती चली गईं. पिछले महीने आलू 107.70 प्रतिशत, प्याज 8.49 प्रतिशत और दाल 15.93 प्रतिशत महंगी हुई. खुदरा महंगाई की दर 7.61 प्रतिशत थी. अक्टूबर 2020 के लिए थोक महंगाई का इंडेक्स जारी हो गया, जो बताता है कि यह 8 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई.

जनता महंगाई की चौतरफा मार से छटपटा रही है. वर्ष भर में लगातार तीसरे माह महंगाई दर (Inflation rate) में वृद्धि हुई है. लोगों की हालत यह है कि क्या धोएं और क्या निचोड़ें! अक्टूबर में मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों के मूल्य में बड़ी तेजी देखने में आई. सितंबर के 1.61 फीसदी की तुलना में यह बढ़कर 2.12 फीसदी पर पहुंच गया. ऐसा लगता है कि राजनीति में उलझी सरकार को अर्थव्यवस्था को सुधारने और महंगाई को घटाने के लिए उपयुक्त कदम उठाने की फुरसत नहीं है. यदि जमाखोरी पर सक्षमता से नियंत्रण लगाकर सप्लाई बढ़ाई जाए तो महंगाई पर काबू पाया जा सकता है. ऐसी क्या वजह है कि सितंबर-अक्टूबर में हर साल दाल महंगी हो जाती है? आलू-प्याज भी छोटे से बड़े सभी लोगों की जरूरत है.

जिन लोगों ने 30 रुपए किलो आलू खरीदे थे, वे अब 60 रुपए किलो के दोगुने दाम पर खरीदने को मजबूर हैं. ऐसे ही प्याज खाना भी लक्जरी हो गया है. किसानों की बजाय बिचौलियों को कीमतें बढ़ने से लाभ होता है. विदेश से समय रहते आयात नहीं किया जाता. जब तक विदेश से जहाज पर खेप आकर पहुंचती है, तब तक प्याज की नई फसल आ जाती है. खाद्य पदार्थों की थोक महंगाई दर में कमी के बाद भी खाने-पीने की चीजों के थोक व चिल्लर मूल्य के लिहाज से चिंता बनी हुई है. सरकार को समझना चाहिए कि महंगाई से जन असंतोष भड़कता है, इसलिए इस पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिए.