Why investment in start-ups is increasing now with China

जब चीन भारत से शत्रुता पर उतारू है और लद्दाख में घुसपैठ व गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद एलएसी पर सेना की भारी तैनाती कर युद्ध की धमकी दे रहा है तो उससे किसी प्रकार का व्यापार-वाणिज्य संबंध क्यों रखा जाए?

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जब चीन भारत से शत्रुता पर उतारू है और लद्दाख में घुसपैठ व गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद एलएसी पर सेना की भारी तैनाती कर युद्ध की धमकी दे रहा है तो उससे किसी प्रकार का व्यापार-वाणिज्य संबंध क्यों रखा जाए? दुश्मनी और व्यापार संबंध एक साथ कैसे चल सकते हैं? जब रिश्तों में कोई सौहार्द्रता नहीं रही और कटुता बढ़ती ही जा रही है तो चीन के निवेश को क्यों स्वीकार किया जाए? यह तर्क कोई मायने नहीं रखता कि भारतीय स्टार्ट-अप कंपनियों में चीन के निवेशकों की सबसे ज्यादा रकम लगी है. सरकार द्वारा अचानक चीनी निवेश पर रोक लगाने से इन स्टार्ट-अप कंपनियों के सामने फंड का संकट आ गया है. होना तो यह चाहिए कि यह कंपनियां स्वयं देश में ही फंड जुटाने की कोशिश करें अथवा चीन को छोड़कर अन्य किसी देश के निवेशकों से रकम हासिल करें. आखिर स्वदेशी और राष्ट्राभिमान की कोई भावना भी तो होनी चाहिए. यह बात सही है कि भारत की स्टार्टअप कंपनियां चीन से मिलने वाली फंडिंग पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. चीन ने अन्य देशों में भी ऐसा ही निवेश कर उन्हें अपने जाल में फांस लिया है. वह कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर विभिन्न देशों को अपना कर्जदार बनाता चला जा रहा है. उसके चंगुल में मालदीव और श्रीलंका फंसे हुए हैं तथा नेपाल व बांग्लादेश पर भी वह यही तरीका आजमा रहा है. स्टार्ट-अप से शुरू कर वहां की सरकारों को बड़े प्रोजेक्ट के लिए लोन देता है और फिर बदले में बहुत कुछ ऐंठ लेता है. पाकिस्तान तो पूरी तरह उसकी गोद में जा बैठा है. अब ऐसा लगता है कि बड़े घरानों के दबाव में केंद्र सरकार अपनी नीतियां बदल रही है. सरकार उन मामलों में हरी झंडी देने पर विचार कर रही है जिसमें चीन के निवेशकों को किसी घरेलू कंपनी में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी देने की बात चल रही है. गृह मंत्रालय से सुरक्षा संबंधी मंजूरी मिलने के बाद आगामी कुछ सप्ताहों में सरकार इस मुद्दे पर अपनी सहमति दे सकती है. यदि सरकार इस तरह का कदम उठाती है तो नकदी के संकट से जूझ रही कई भारतीय स्टार्ट-अप कंपनियों को काफी राहत मिल सकती है. अप्रैल माह से चीन के निवेशकों के लगभग 100 आवेदन विभिन्न सरकारी विभागों में विचाराधीन हैं. चीन की कई कंपनियां भारत में निवेश की इच्छुक हैं और उनके प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रस्ताव आए हुए हैं. बताया जा रहा है कि इनमें से ज्यादातर आवेदन ऐसे क्षेत्रों से जुड़े हैं जो आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील नहीं माने जाते.