नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2005 के राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (National Curriculum Framework), शिक्षा का अधिकार (Right to Education) अधिनियम 2009, और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020, घरेलू भाषा / मातृभाषा में स्कूली शिक्षा प्रदान करने पर जोर देते हैं।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (Union Ministry of Education) रमेश पोखरियाल निशंक (Ramesh Pokhriyal Nishank) ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दायर एक अपील पर शीर्ष अदालत द्वारा जारी एक नोटिस के जवाब में यह बात कही। जिसमें राज्य के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी। जिसमें कहा गया था कि सरकारी स्कूलों में इंग्लिश मीडियम को पहली से छठी कक्षा तक अनिवार्य बनाया जाए।
केंद्र ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि आरटीई अधिनियम की धारा 29 (2) (एफ) कहती है कि “शिक्षा का माध्यम, जहां तक संभव हो, बच्चे की मातृभाषा में हो”। एनसीएफ ( NCF) ने कहा कि एक हलफनामे में यह भी कहा गया है कि “बच्चों की घरेलू भाषा … स्कूलों में शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए”।
आरटीई अधिनियम (RTE Act) के शपथपत्र में कहा गया है, इसे भी एनसीएफ (NCF) से निकाल दिया है: “एनईपी (NEP) 2005, घर की भाषा या मातृभाषा को परिभाषित करता है, क्योंकि मातृ भाषाओं, बड़े रिश्तेदारी समूहों, सड़क और पड़ोस की भाषाओं को माना जाता है, जो एक बच्चा अपने घर पर और सामाजिक वातावरण में स्वाभाविक रूप से बोली जाती है।
यदि किसी स्कूल में उच्च स्तर पर चाइल्ड होम लैंग्वेजस में पढ़ाने का प्रावधान नहीं हैं, तो प्राथमिक स्कूल के पाठ्यक्रम को अभी भी होम लैंग्वेज (भाषा) के माध्यम से कवर किया जाना चाहिए … ”