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    मुंबई: देश में कोरोना का कहर लगातार बढ़ रहा है। कोरोना की वजह से इस वक़्त पूरा देश परेशान है। कोरोना की वजह से कई जानें गई हैं। वहीं कई लोग कोरोना काल में कई और कारणों से भी अपनी जान गवां बैठे हैं। ऐसे में बांग्ला फिल्मों के प्रसिद्ध निर्देशक बुद्धदेव दासगुप्ता (Buddhadeb Dasgupta) गुरुवार सुबह करीब छह बजे दक्षिण कोलकाता स्थित अपने आवास पर निधन हो गया है। वह 77 वर्षों के थे। वह लंबे समय से वृद्धावस्था जनित बीमारी से पीड़ित थे और डायलिसिस पर थे. गुरुवार की रात को निद्रावस्था में ही उनकी मौत हो गई। 

    बांग्ला की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि ‘प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक के निधन पर वह बहुत ही शोकाहत हैं। उनके निधन से फिल्म जगत को अपूर्णीय क्षति हुई है। वह दिवंगत फिल्म निर्देशक के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करती हैं।’

    अभिनेता दीपांकर दे ने कहा, “मैं बहुत हैरान और दुखी हूं। मैंने उनके साथ एक फिल्म पर काम किया था। मिथुन और मैंने कड़ी मेहनत की थी। हर शॉट को सावधानी से लेते थे। वह सुबह 4 बजे उठ जाते थे। उनके सभी कार्यों में काव्यात्मक गुण थे।” अभिनेता कौशिक सेन ने कहा, ‘मुझे याद है कि वे फिल्म के बारे में बात कर रहे थे। उनकी कई तस्वीरों का जिक्र किया जा सकता है। वे बहुत ही उत्कृष्ट कवि थे। वह एक से अधिक बार हमारे थिएटर देखने आए थे। उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया।’

    बुद्धदेव दासगुप्ता ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1986 में 10 मिनट की डॉक्यूमेंट्री ‘द कॉन्टिनेंट ऑफ लव’ से की थी। उनकी पहली पूर्ण फीचर फिल्म, ‘दूरत्व’, 1986 में रिलीज हुई थी। फीचर फिल्मों में ‘कालपुरुष’, ‘मंद मेयेर उपाख्यान’ आदि महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है।  बुद्धदेव दासगुप्ता को 28 मई 2006 को स्पेन में मैड्रिड अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फिल्म ‘ताहेदेर कोथा’ में अपने अविस्मरणीय काम से उन्होंने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। ‘निम अन्नपूर्णा’, ‘गृहयुद्ध’, ‘फेरा’, ‘बाघ बहादुर’, ‘उत्तरा’ उनकी उल्लेखनीय फिल्में हैं. साल 1989 में ‘बाघ बहादुर’, साल 1993 में ‘चराचर’ और 1996 में ‘लाल दरजा’ ने दर्शकों के मन पर अपनी छाप छोड़ी थी।