‘शोले’ ने बॉलीवुड में पूरे किए 45 साल, जानें फिल्म की रोचक जानकारियां

Loading

शोले भारत की सफलतम फिल्मों में से एक है। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पैसों की बरसात कर दी थी। गली-गली फिल्म के संवाद गूंजे। पक्के दोस्तों को जय-वीरू कहा जाने लगा तो बक-बक करने वाली लड़कियों को बसंती की उपमा दी जाने लगी। मांओं ने अपने छोटे बच्चों को गब्बर का डर दिखाकर सुलाया। भारतीय जनमानस पर इस फिल्म का गहरा असर हुआ। 38 वर्ष बाद इस फिल्म को थ्री डी में परिवर्तित कर फिर रिलीज किया गया था। 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई ‘शोले’ को 45 वर्ष हो रहे हैं। इस फिल्म से जुड़े कई किस्से मशहूर हुए आईये जानते है उनके बारे में ……

– फिल्म शोले के रिलीज होने पर बॉक्स ऑफिस पर शुक्रवार और शनिवार को कुछ खास प्रतिसाद नहीं मिला। महंगी लागत में बानी अपनी फिल्म का यह हाल देखकर निर्देशक रमेश सिप्पी परेशान थे। रविवार के दिन उन्होंने अपने घर पर एक मीटिंग रखी, जिसमें फिल्म के लेखक को भी बुलाया गया। उन्होंने अपनी बातों को नतीजा यह निकला कि फिल्म में अमिताभ बच्चन की मौत के कारण दर्शकों को यह फिल्म पसंद नहीं आ रही। रमेश सिप्पी ने कहा कि फिल्म का अंत बदला दिया जाएं , जिसमें फिल्म के अंतिम चरण को फिर से फिल्माया जाएगा और बाद में फिल्म में जोड़ दिया जाएगा। सलीम-जावेद ने रमेश सिप्पी से कहा कि, हमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए कुछ दिन रुक जाते है, यदि फिर भी प्रतिसाद ख़राब आता है तो वे नया अंत शूट कर लेंगे। उनकी बातों को सभी में मान लिया और कुछ दिन बाद फिल्म ने रफ़्तार पकड़ना शुरू कर दिया। 

– निर्देशक जीपी सिप्पी ने अपनी फिल्म सीता और गीता (1972) की शानदार सफलता की पार्टी अपने घर की छत पर दी थी। इस पार्टी में पिता जीपी और बेटे रमेश सिप्पी ने तय किया था कि वे किसी बड़े बजट की फिल्म बनाएंगे। शोले की शुरुआत इसी पार्टी से शुरू हुई।

– शोले फिल्म की कहानी मार्च 1973 से लिखना आरंभ हुई थी। रोजाना सुबह दस से ग्यारह बजे के बीच सलीम-जावेद तथा रमेश सिप्पी अपने को सिप्पी फिल्म लेखन कक्ष में बंद कर लेते थे। घंटों चर्चा करते थे। इस दौरान चाय-‍सिगरेट और बीयर की ढेर सारी बोतलें खाली हो जाती थी।

– फिल्म में अमजद खान को गब्बर सिंह डाकू का जो नाम दिया गया, वह असली डाकू का नाम है। सलीम के पिता उन्हें डकैत गब्बर के बारे में बताया करते थे। वह पुलिस पर हमला करता और उनके कान-नाक काट कर छोड़ दिया करता था।

– लोकेशन हंटर येडेकर, रमेश सिप्पी की टीम में कोलम्बस की तरह थे। रमेश नहीं चाहते थे कि इस बार चम्बल की घाटी या राजस्थान जाकर दर्शकों की परिचित डकैत लोकेशन पर शूटिंग की जाए। मंगलौर-बंगलौर और कोचीन में सफर करते आखिर में येडेकर को बंगलौर के पास की जगह जो पहाडि़यों से घिरी थी, पसंद आई। इस लोकेशन पर इंग्लिश फिल्म माया की शूटिंग पहले हुई थी।

-शोले फिल्म में गब्बर की गुफा और ठाकुर का घर मीलों दूर दिखाया गया है। लेकिन सचमुच में दोनों पास-पास थे। रामनगरम् को फिल्म के सेट के मुताबिक मुंबई के तीस और स्थानीय सत्तर लोगों ने रात-दिन मेहनत कर पूरा गांव बसा दिया।

– हेमा मालिनी फिल्म शोले में बसंती तांगेवाली का रोल करने को तैयार नहीं थी। इसके पीछे फिल्म अंदाज तथा सीता और गीता की जबरदस्त सफलता थी। रमेश सिप्पी ने उन्हें समझाया और वे मान गईं।

– शोले फिल्म ने पांच साल लगातार बम्बई के सिनेमाघर में चल कर एक कीर्त्तिमान कायम किया था। इसके पहले बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘किस्मत’ (1943) कलकत्ता में लगातार साढ़े तीन साल तक चली थी। शोले का रिकॉर्ड दिलवाले दुल्हनियां ने तोड़ा। यह फिल्म अभी भी मुंबई के मराठा मंदिर में चल रही है।

-हेमा मालिनी के साथ रोमांटिक सीन करते समय धर्मेन्द्र जानबूझ कर गलतियां करते थे ताकि रीटेक हो और उन्हें हेमा के साथ ज्यादा वक्त गुजारने का अवसर मिले। जब यह बात समझ में आ गई कि गरम धरम जानबूझ कर ये हरकतें कर रहे हैं तो धरम ने दूसरी चाल चली। वे यूनिट मेंबर्स को गलतियां करने के बदले में पैसे देते थे।